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यु॒वाकु॒ हि शची॑नां यु॒वाकु॑ सुमती॒नाम्। भू॒याम॑ वाज॒दाव्ना॑म्॥

English Transliteration

yuvāku hi śacīnāṁ yuvāku sumatīnām | bhūyāma vājadāvnām ||

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Pad Path

यु॒वाकु॑। हि। शची॑नाम्। यु॒वाकु॑। सु॒ऽम॒ती॒नाम्। भू॒याम॑। वा॒ज॒दाव्ना॑म्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:17» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:32» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:4» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

उक्त कार्य्य के करने से क्या होता है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - हम लोग (हि) जिस कारण (शचीनाम्) उत्तम वाणी वा श्रेष्ठ कर्मों के (युवाकु) मेल तथा (वाजदाव्नाम्) विद्या वा अन्न के उपदेश करने वा देने और (सुमतीनाम्) श्रेष्ठ बुद्धिवाले विद्वानों के (युवाकु) पृथग्भाव करने को (भूयाम) समर्थ होवें, इस कारण से इनको साधें॥४॥
Connotation: - मनुष्यों को सदा आलस्य छोड़कर अच्छे कामों का सेवन तथा विद्वानों का समागम नित्य करना चाहिये, जिससे अविद्या और दरिद्रपन जड़-मूल से नष्ट हों॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

तदेतत्करणेन किं भवतीत्युपदिश्यते।

Anvay:

वयं हि शचीनां युवाकु वाजदाव्नां सुमतीनां युवाकु भूयाम समर्था भवेमात एतौ साधयेम॥४॥

Word-Meaning: - (युवाकु) मिश्रीभावम्। अत्र बाहुलकादौणादिकः काकुः प्रत्ययः। (हि) यतः (शचीनाम्) वाणीनां सत्कर्मणां वा। शचीति वाङ्नामसु पठितम्। निघं० १.११) कर्मनामसु च। (निघं०२.१) (युवाकु) पृथग्भावम्। अत्रोभयत्र सुपां सुलुग्० इति विभक्तेर्लुक। (सुमतीनाम्) शोभना मतिर्येषां तेषां विदुषाम्। (भूयाम) समर्था भवेम। शकि लिङ् च। (अष्टा०३.३.१७२) इति लिङ्, बहुलं छन्दसि इति शपो लुक् च। (वाजदाव्नाम्) वाजस्य विज्ञानस्यान्नस्य दातॄणामुपदेशकानां वा॥४॥
Connotation: - मनुष्यैः सदाऽऽलस्यं त्यक्त्वा सत्कर्माणि सेवित्वा विद्वत्समागमो नित्यं कर्त्तव्यः। यतोऽविद्यादारिद्र्ये मूलतो नष्टे भवेताम्॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी आळस सोडून सत्कर्माचे सेवन करावे व विद्वानांची संगती सदैव करावी. ज्यामुळे अविद्या व दारिद्र्य मुळापासून नष्ट व्हावे. ॥ ४ ॥