इन्द्रा॒वरु॑णयोर॒हं स॒म्राजो॒रव॒ आ वृ॑णे। ता नो॑ मृळात ई॒दृशे॑॥
indrāvaruṇayor ahaṁ samrājor ava ā vṛṇe | tā no mṛḻāta īdṛśe ||
इन्द्रा॒वरु॑णयोः। अ॒हम्। स॒म्ऽराजोः॑। अवः॑। आ। वृ॒णे॒। ता। नः॒। मृ॒ळा॒तः॒। ई॒दृशे॑॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब सत्रहवें सूक्त का आरम्भ है। इसके पहिले मन्त्र में इन्द्र और वरुण के गुणों का उपदेश किया है-
SWAMI DAYANAND SARSWATI
तत्रेन्द्रावरुणगुणा उपदिश्यन्ते।
अहं ययोः सम्राजोरिन्द्रावरुणयोः सकाशादव आवृणे तावीदृशे नोऽस्मान् मृडातः॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
पूर्वोक्त सोळाव्या सूक्ताचे अनुयोगी मित्र व वरुण यांच्या अर्थाचे या सूक्ताबरोबर प्रतिपादन करून या सतराव्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर सोळाव्या सूक्ताच्या अर्थाची संगती लावली पाहिजे.