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त्वं माने॑भ्य इन्द्र वि॒श्वज॑न्या॒ रदा॑ म॒रुद्भि॑: शु॒रुधो॒ गोअ॑ग्राः। स्तवा॑नेभिः स्तवसे देव दे॒वैर्वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥

English Transliteration

tvam mānebhya indra viśvajanyā radā marudbhiḥ śurudho goagrāḥ | stavānebhiḥ stavase deva devair vidyāmeṣaṁ vṛjanaṁ jīradānum ||

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Pad Path

त्वम्। माने॑भ्यः। इ॒न्द्र॒। वि॒श्वऽज॑न्या। रद॑। म॒रुत्ऽभिः॑। शु॒रुधः॑। गोऽअ॑ग्राः। स्तवा॑नेभिः। स्त॒व॒से॒। दे॒व॒। दे॒वैः। वि॒द्याम॑। इ॒षम्। वृ॒जन॑म्। जी॒रऽदा॑नुम् ॥ १.१६९.८

Rigveda » Mandal:1» Sukta:169» Mantra:8 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:9» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (देव) विद्वान् (इन्द्र) सभापति ! जैसे हम लोग (मानेभ्यः) सत्कारों से (स्तवसे) स्तुति के लिये (स्तवानेभिः) समस्त विद्याओं की स्तुति प्रशंसा करनेवाले (मरुद्भिः) पवनों की विद्या जाननेवाले (देवैः) विद्वानों से (विश्वजन्या) विश्व को उत्पन्न करने और (शुरुधः) निज हिंसक किरणों के धारण करनेवाले (गो अग्राः) जिनके सूर्य किरण आगे विद्यमान उन जल और (इषम्) अन्न (वृजनम्) बल और (जीरदानुम्) जीवनस्वरूप को (विद्याम) जानें वैसे इन जल और अन्नादि को (त्वम्) आप (रद) प्रत्यक्ष जानो अर्थात् उनका नाम धामरूप सब प्रकार जानो ॥ ८ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को योग्य है कि विद्वानों के सत्कार से विद्याओं को अध्ययन कर पदार्थविद्या के विज्ञान को प्राप्त होवें ॥ ८ ॥इस सूक्त में विद्वान् आदि के गुणों का वर्णन होने से इसके अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥यह एकसौ उनहत्तरवाँ सूक्त और नवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे देवेन्द्र यथा वयं मानेभ्यस्स्तवसे स्तवानेभिर्मरुद्भिर्देवैर्विश्वजन्या शुरुधो गोअग्रा अप इषं वृजनं जीरदानुं च विद्याम तथैता एतच्च त्वं रद ॥ ८ ॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (मानेभ्यः) सत्कारेभ्यः (इन्द्र) सभेश (विश्वजन्या) या विश्वं जनयन्ति ताः। अत्र भव्यगेयेति कर्त्तरि जन्यशब्दः सुपां सुलुगिति जसस्स्थाने आकारादेशः। (रद) विलिख। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (मरुद्भिः) मरुद्विद्याविद्भिः (शुरुधः) ये शुरून् हिंसकान् सूर्यकिरणान् दधति धरन्ति ते (गोअग्राः) गावः सूर्यकिरणा अग्रे यासान्ताः (स्तवानेभिः) सर्वविद्यास्तावकैः (स्तवसे) स्तुतये (देव) विद्वन् (देवैः) विद्वद्भिः (विद्याम) जानीयाम (इषम्) अन्नम् (वृजनम्) बलम् (जीरदानुम्) जीवस्वरूपम् ॥ ८ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्विदुषां सत्कारेण विद्या अधीत्य पदार्थविद्याविज्ञानं प्राप्तव्यम् ॥ ८ ॥अस्मिन् सूक्ते विद्वदादिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेदितव्या ॥इत्येकोनषष्ट्युत्तरं शततमं सूक्तं नवमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी विद्वानांचा सत्कार करून विद्याध्ययन व पदार्थ विद्येचे विज्ञान प्राप्त करावे. ॥ ८ ॥