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अम्य॒क्सा त॑ इन्द्र ऋ॒ष्टिर॒स्मे सने॒म्यभ्वं॑ म॒रुतो॑ जुनन्ति। अ॒ग्निश्चि॒द्धि ष्मा॑त॒से शु॑शु॒क्वानापो॒ न द्वी॒पं दध॑ति॒ प्रयां॑सि ॥

English Transliteration

amyak sā ta indra ṛṣṭir asme sanemy abhvam maruto junanti | agniś cid dhi ṣmātase śuśukvān āpo na dvīpaṁ dadhati prayāṁsi ||

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Pad Path

अम्य॑क्। सा। ते॒। इ॒न्द्र॒। ऋ॒ष्टिः। अ॒स्मे इति॑। सने॑मि। अभ्व॑म्। म॒रुतः॑। जु॒न॒न्ति॒। अ॒ग्निः। चि॒त्। हि। स्म॒। अ॒त॒से। शु॒शु॒क्वान् आपः॑। न। द्वी॒पम्। दध॑ति। प्रयां॑सि ॥ १.१६९.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:169» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:8» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) दुष्टों को विदारण करनेवाले ! जिससे (मरुतः) मनुष्य (सनेमि) प्राचीन और (अभ्वम्) नेत्र से प्रत्यक्ष देखने में अप्रसिद्ध उत्तम विषय को (जुनन्ति) प्राप्त होते हैं (सा) वह (ते) आपकी (ऋष्टिः) प्राप्ति (अस्मे) हमारे लिये (अम्यक्) सीधी चाल को प्राप्त होती है अर्थात् सरलता से आप हम लोगों को प्राप्त होते हैं। और (शुशुक्वान्) शुद्ध करनेवाले (अग्निः) अग्नि के समान (चित्) ही आप (हि) निश्चय के साथ (स्म) जैसे आश्चर्यवत् (आपः) जल (द्वीपम्) दो प्रकार से जिसमें जल आवें-जावें उस बड़े भारी नद को प्राप्त हों (न) वैसे सबके अनादि कारण को (अतसे) निरन्तर प्राप्त होते हैं इससे सब मनुष्य (प्रयांसि) सुन्दर मनोहर चाहने योग्य वस्तुओं को (दधति) धारण करते हैं ॥ ३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जिस अनादि कारण को विद्वान् जानते उसको और जन नहीं जान सकते हैं ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे इन्द्र यथा मरुतः सनेम्यभ्वं जुनन्ति सा ते ऋष्टिरस्मे अम्यगस्ति। शुशुक्वानग्निश्चित्वं हि स्मापो द्वीपं न सर्वेषामनादिकारणमतसेऽतः सर्वे प्रयांसि दधति ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (अम्यक्) अमिं सरलां गतिमञ्चति गच्छति (सा) (ते) तव (इन्द्र) दुष्टविदारक (ऋष्टिः) प्राप्तिः (अस्मे) अस्मभ्यम् (सनेमि) पुराणम्। सनेमीति पुराणना०। निघं०। ३। २७। (अभ्वम्) अचाक्षुषत्वेनाप्रसिद्धं कारणम् (मरुतः) मनुष्याः (जुनन्ति) प्राप्नुवन्ति (अग्निः) पावका इव (चित्) इव (हि) खलु (स्म) (अतसे) निरन्तरं प्राप्नुषे (शुशुक्वान्) शोचकः (आपः) जलानि (न) इव (द्वीपम्) द्विधापांसि यस्मिंस्तम् (दधति) धरन्ति (प्रयांसि) कमनीयानि वस्तूनि ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यदनादिकारणं विद्वांसो जानन्ति तदितरे जना ज्ञातुं न शक्नुवन्ति ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. ज्या अनादि कारणाला विद्वान जाणतात, ते इतर लोक जाणू शकत नाहीत. ॥ ३ ॥