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असू॑त॒ पृश्नि॑र्मह॒ते रणा॑य त्वे॒षम॒यासां॑ म॒रुता॒मनी॑कम्। ते स॑प्स॒रासो॑ऽजनय॒न्ताभ्व॒मादित्स्व॒धामि॑षि॒रां पर्य॑पश्यन् ॥

English Transliteration

asūta pṛśnir mahate raṇāya tveṣam ayāsām marutām anīkam | te sapsarāso janayantābhvam ād it svadhām iṣirām pary apaśyan ||

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Pad Path

असू॑त। पृश्निः॑। म॒ह॒ते। रणा॑य। त्वे॒षम्। अ॒यासा॑म्। म॒रुता॑म्। अनी॑कम्। ते। स॒प्स॒रासः। अ॒ज॒न॒य॒न्त॒। अभ्व॑म्। आत्। इत्। स्व॒धाम्। इ॒षि॒राम्। परि॑। अ॒प॒श्य॒न् ॥ १.१६८.९

Rigveda » Mandal:1» Sukta:168» Mantra:9 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:7» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - इन (अयासाम्) गमनशील (मरुताम्) मनुष्यों का (पृश्निः) आदित्य के समान प्रचण्ड प्रतापवान् (त्वेषम्) प्रदीप्त (अनीकम्) सैन्यगण (महते) महान् (रणाय) संग्राम के लिये (असूत) उत्पन्न होता है (आत्) इसके अनन्तर (इत्) ही (ते) वे (इषिराम्) प्राप्त होने योग्य (स्वधाम्) अन्न को (अजनयन्त) उत्पन्न करते और (सप्सरासः) गमन करते हुए (अभ्वम्) अविद्यमान अर्थात् जो प्रत्यक्ष विद्यमान नहीं उसको (पर्य्यपश्यन्) सब ओर से देखते हैं ॥ ९ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो विचक्षण राजपुरुष विजय के लिये प्रशंसित सेना को स्वीकार कर अन्नादि ऐश्वर्य की उन्नति करते हैं, वे तृप्ति को प्राप्त होते हैं ॥ ९ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

एषामयासां मरुतां पृश्निरिव त्वेषमनीकं महते रणायासूत ते आदिदिषिरां स्वधामजनयन्त सप्सरासः सन्तोऽभ्वं पर्य्यपश्यन् ॥ ९ ॥

Word-Meaning: - (असूत) सूते (पृश्निः) आदित्य इव (महते) (रणाय) संग्रामाय (त्वेषम्) प्रदीप्तम् (अयासाम्) गन्तॄणाम् (मरुताम्) मनुष्याणाम् (अनीकम्) सैन्यम् (ते) (सप्सरासः) गन्तारः। अत्र सप्तेरौणादिकः सरप्रत्ययः। सप्तीति गतिकर्मा। निघं० ३। १४। (१) (अजनयन्त) (अभ्वम्) अविद्यमानम् (आत्) अनन्तरम् (इत्) एव (स्वधाम्) अन्नम् (इषिराम्) प्राप्तव्याम् (परि) (अपश्यन्) सर्वतः पश्येयुः ॥ ९ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये विचक्षणा राजपुरुषा विजयाय प्रशस्तां सेनां स्वीकृत्याऽन्नाद्यैश्वर्यमुन्नयन्ति ते तृप्तिमाप्नुवन्ति ॥ ९ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे चतुर विद्वान राजपुरुष विजयासाठी प्रशंसित सेनेचा स्वीकार करून अन्न इत्यादी ऐश्वर्य वाढवतात, ते तृप्त असतात.