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प्र स्क॒म्भदे॑ष्णा अनव॒भ्ररा॑धसोऽलातृ॒णासो॑ वि॒दथे॑षु॒ सुष्टु॑ताः। अर्च॑न्त्य॒र्कं म॑दि॒रस्य॑ पी॒तये॑ वि॒दुर्वी॒रस्य॑ प्रथ॒मानि॒ पौंस्या॑ ॥

English Transliteration

pra skambhadeṣṇā anavabhrarādhaso lātṛṇāso vidatheṣu suṣṭutāḥ | arcanty arkam madirasya pītaye vidur vīrasya prathamāni pauṁsyā ||

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Pad Path

प्र। स्क॒म्भऽदे॑ष्णाः। अ॒न॒व॒भ्रऽरा॑धसः। अ॒ला॒तृ॒णासः॑। वि॒दथे॑षु। सुऽस्तु॑ताः। अर्च॑न्ति। अ॒र्कम्। म॒दि॒रस्य॑। पी॒तये॑। वि॒दुः। वी॒रस्य॑। प्र॒थ॒मानि॑। पौंस्या॑ ॥ १.१६६.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:166» Mantra:7 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:2» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (स्कम्भदेष्णाः) स्तम्भन देनेवाले अर्थात् रोक देनेवाले (अनवभ्रराधसः) जिनका धन विनाश को नहीं प्राप्त हुआ, (अलातृणासः) पूर्ण शत्रुओं को मारनेहारे (सुष्टुताः) अच्छी प्रशंसा को प्राप्त जन (विदथेषु) संग्रामों में (वीरस्य) शूरता आदि गुणयुक्त युद्ध करनेवाले के (प्रथमानि) प्रथम (पौंस्या) पुरुषार्थों बलों को (विदुः) जानते हैं वे (मदिरस्य) आनन्ददायक रस के (पीतये) पीने को (अर्कम्) सत्कार करने योग्य विद्वान् का (प्र, अर्च्चन्ति) अच्छा सत्कार करते हैं ॥ ७ ॥
Connotation: - जो यथायोग्य आहार-विहार करने, शूरजनों से प्रीति रखनेवाले अपनी सेना के बलों को बढ़ाते हैं, वे शत्रुरहित असङ्ख्य धनयुक्त बहुत दान देनेवाले और प्रशंसा को प्राप्त होते हैं ॥ ७ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

ये स्कम्भदेष्णा अनवभ्रराधसोऽलातृणासः सुष्टुता जना विदथेषु वीरस्य प्रथमानि पौंस्या विदुस्ते मदिरस्य पीतयेऽर्कं प्रार्च्चन्ति ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (प्र) (स्कम्भदेष्णाः) स्तम्भनदातारः (अनवभ्रराधसः) अविनष्टधनाः (अलातृणासः) अलं शत्रूणां हिंसकाः (विदथेषु) संग्रामेषु (सुष्टुताः) सुष्ठुप्रशंसिताः (अर्च्चन्ति) सत्कुर्वन्ति (अर्कम्) अर्चनीयं विद्वांसम् (मदिरस्य) आनन्दप्रदस्य रसस्य (पीतये) पानाय (विदुः) जानन्ति (वीरस्य) शूरत्वादिगुणयुक्तस्य योद्धुः (प्रथमानि) (पौंस्या) बलानि ॥ ७ ॥
Connotation: - ये युक्ताऽऽहारविहाराः शूरजनप्रियाः स्वसेनाबलानि वर्द्धयन्ते ते शत्रुविरहिता असंख्यधना पुष्कलदातारः प्राप्तप्रशंसा भवन्ति ॥ ७ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे यथायोग्य आहार-विहार करून शूर लोकांशी प्रीती ठेवणाऱ्या आपल्या सेनेचे बल वाढवितात ते शत्रूरहित होतात व अमाप धन प्राप्त करून पुष्कळ दान देतात व प्रशंसित होतात. ॥ ७ ॥