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आ ये रजां॑सि॒ तवि॑षीभि॒रव्य॑त॒ प्र व॒ एवा॑स॒: स्वय॑तासो अध्रजन्। भय॑न्ते॒ विश्वा॒ भुव॑नानि ह॒र्म्या चि॒त्रो वो॒ याम॒: प्रय॑तास्वृ॒ष्टिषु॑ ॥

English Transliteration

ā ye rajāṁsi taviṣībhir avyata pra va evāsaḥ svayatāso adhrajan | bhayante viśvā bhuvanāni harmyā citro vo yāmaḥ prayatāsv ṛṣṭiṣu ||

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Pad Path

आ। ये। रजां॑सि। तवि॑षीभिः। अव्य॑त। प्र। वः॒। एवा॑सः। स्वऽय॑तासः। अ॒ध्र॒ज॒न्। भय॑न्ते। विश्वा॑। भुव॑नानि। ह॒र्म्या। चि॒त्रः। वः॒। यामः॑। प्रऽय॑तासु। ऋ॒ष्टिषु॑ ॥ १.१६६.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:166» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:1» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! (ये) जो (वः) तुम्हारे (एवासः) गमनशील (स्वयतासः) अपने बल से नियम को प्राप्त अर्थात् अश्वादि के विना आप ही गमन करने में सन्नद्ध रथ (तविषीभिः) बलों के साथ (रजांसि) लोकों को (आ, अव्यत) अच्छे प्रकार प्राप्त होते हैं वे (प्र, अध्रजन्) अत्यन्त धावते हैं, उनके धावन में (विश्वा) समस्त (भुवनानि) लोक (हर्म्या) उत्तमोत्तम घर (भयन्ते) काँपते हैं इस कारण (प्रयतासु) नियत (ऋष्टिषु) प्राप्तियों में (चित्रः) अद्भुत (वः) तुम्हारा (यामः) पहुँचना है ॥ ४ ॥
Connotation: - विद्वान् जन निज शास्त्रीय अद्भुत बल से रथादि बना के नियत वृत्तियों में जा आकर सत्य विद्या पढ़ाने और उनके उपदेशों से सब मनुष्यों को पाल के असत्य विद्या के उपदेशों को निवृत्त करें ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे विद्वांसो ये व एवासः स्वयतासो रथास्तविषीभी रजांसि आ अव्यत ते प्राध्रजन्। तेषां धावने विश्वा भुवनानि हर्म्या भयन्ते तस्मात् प्रयतास्वृष्टिषु चित्रो वो यामोऽस्ति ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (ये) (रजांसि) लोकाः (तविषीभिः) बलैः (अव्यत) प्राप्नुवन्ति (प्र) (वः) युष्माकम् (एवासः) गमनशीलाः (स्वयतासः) स्वेन बलेन नियमं प्राप्ता नत्वन्येनाश्वादिनेति (अध्रजन्) धावन्ति (भयन्ते) कम्पन्ते (विश्वा) सर्वाणि (भुवनानि) लोकाः (हर्म्या) उत्तमानि गृहाणि (चित्रः) अद्भुतः (वः) युष्माकम् (यामः) प्रापणम् (प्रयतासु) नियतासु (ऋष्टिषु) प्राप्तिषु ॥ ४ ॥
Connotation: - विद्वांसो निजशास्त्राद्भुतबलेन रथादिकं निर्माय नियतासु वृत्तिषु गत्वागत्य सत्यविद्याऽध्यापनोपदेशैः सर्वान् मनुष्यान् पालयित्वाऽसत्यविद्योपदेशान्निवर्त्तयेयुः ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - विद्वान लोकांनी आपल्या शास्त्रीय अद्भुत बलाने रथ इत्यादी बनवून नियमित जाणे-येणे करावे. सत्य विद्या शिकवून व त्यांचा उपदेश करून सर्व माणसांचे पालन करावे. असत्य विद्येचा नाश करावा. ॥ ४ ॥