Go To Mantra

भूरी॑णि भ॒द्रा नर्ये॑षु बा॒हुषु॒ वक्ष॑स्सु रु॒क्मा र॑भ॒सासो॑ अ॒ञ्जय॑:। अंसे॒ष्वेता॑: प॒विषु॑ क्षु॒रा अधि॒ वयो॒ न प॒क्षान्व्यनु॒ श्रियो॑ धिरे ॥

English Transliteration

bhūrīṇi bhadrā naryeṣu bāhuṣu vakṣassu rukmā rabhasāso añjayaḥ | aṁseṣv etāḥ paviṣu kṣurā adhi vayo na pakṣān vy anu śriyo dhire ||

Mantra Audio
Pad Path

भूरी॑णि। भ॒द्रा। नर्ये॑षु। बा॒हुषु॑। वक्षः॑ऽसु। रु॒क्माः। र॒भ॒सासः॑। अ॒ञ्जयः॑। अंसे॑षु। एताः॑। प॒विषु॑। क्षु॒राः। अधि॑। वयः॑। न। प॒क्षान्। वि। अनु॑। श्रियः॑। धि॒रे॒ ॥ १.१६६.१०

Rigveda » Mandal:1» Sukta:166» Mantra:10 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:2» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:10


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जिनके (नर्येषु) मनुष्यों के लिये हितरूप पदार्थों में (भूरीणि) बहुत (भद्रा) सेवन करने योग्य धर्मयुक्त कर्म वा (बाहुषु) प्रचण्ड भुजदण्डों और (वक्षस्सु) वक्षःस्थलों में (रुक्माः) सुवर्ण और रत्नादियुक्त अलङ्कार (अंसेषु) स्कन्धों में (एताः) विद्या की शिक्षा में प्राप्त (रभसासः) वेग जिनमें विद्यमान ऐसे (अञ्जयः) प्रसिद्ध प्रशंसायुक्त पदार्थ (पविषु, अधि) उत्तम शिक्षायुक्त वाणियों में (क्षुराः) धर्मानुकूल शब्द वर्त्तमान हैं वे (वयः) पखेरू (पक्षान्) पंखों को (न) जैसे वैसे (श्रियः) लक्ष्मियों को (वि, अनु, धिरे) विशेषता से अनुकूल धारण करते हैं ॥ १० ॥
Connotation: - जो ब्रह्मचर्य से विद्याओं को प्राप्त हुए, गृहाश्रम में आभूषणों को धारण किये पुरुषार्थयुक्त परोपकारी, वानप्रस्थाश्रम में वैराग्य को प्राप्त पढ़ाने में रमे हुए और संन्यास आश्रम में प्राप्त हुआ यथार्थभाव जिनको और परोपकारी सर्वत्र विचरते सत्य का ग्रहण और असत्य का त्याग कराते हुए समस्त मनुष्यों को बढ़ाते हैं, वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं ॥ १० ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

येषां नर्येषु भूरीणि भद्रा बाहुषु वक्षःसुः रुक्मा अंसेष्वेता रभसासोऽञ्जयः पविष्वधिक्षुरा वर्त्तन्ते वयः पक्षान् न श्रियो व्यनु धिरे ॥ १० ॥

Word-Meaning: - (भूरीणि) बहूनि (भद्रा) भजनीयानि धर्म्याणि कर्माणि (नर्येषु) नृभ्यो हितेषु (बाहुषु) प्रचण्डदोर्दण्डेषु (वक्षस्सु) उरस्सु (रुक्माः) सुवर्णरत्नादियुक्ता अलङ्काराः (रभसासः) वेगवन्तः (अञ्जयः) प्रसिद्धप्रशंसाः (अंसेषु) स्कन्धेषु (एताः) शिक्षायां प्राप्ताः (पविषु) सुशिक्षितासु वाक्षु। पवीति वाङ्ना०। निघं० १। ११। (क्षुराः) धर्म्यशब्दाः (अधि) अधिके (वयः) पक्षिणः (न) इव (पक्षान्) (वि) (अनु) (श्रियः) लक्ष्मीः (धिरे) दधिरे दधति। अत्र छान्दसोऽभ्यासस्य लुक् ॥ १० ॥
Connotation: - ये ब्रह्मचर्येण प्राप्तविद्या गृहाश्रमे धृताऽलङ्काराः पुरुषार्थयुक्ताः कृतपरोपकारा वानप्रस्थे प्राप्तवैराग्या अध्यापनरताः संन्यासेऽधिगतयाथातथ्याः परोपकाररताः सर्वत्र विचरन्तः सत्यं ग्राहयन्तोऽसत्यं त्याजयन्तोऽखिलाञ्जनान् वर्द्धयन्ति ते मोक्षमाप्नुवन्ति ॥ १० ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जे ब्रह्मचर्याने विद्या प्राप्त करतात, गृहस्थाश्रमात आभूषण धारण करून पुरुषार्थयुक्त व परोपकारी बनतात, वानप्रस्थामध्ये वैराग्ययुक्त बनून शिकविण्यात रमलेले असतात व संन्यासाश्रमात यथार्थ भावाने परोपकारी बनून सर्वत्र संचार करतात. सत्याचे ग्रहण व असत्याचा त्याग करीत संपूर्ण मानव समाजाला उन्नत करून ते मोक्ष प्राप्त करतात. ॥ १० ॥