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वधीं॑ वृ॒त्रं म॑रुत इन्द्रि॒येण॒ स्वेन॒ भामे॑न तवि॒षो ब॑भू॒वान्। अ॒हमे॒ता मन॑वे वि॒श्वश्च॑न्द्राः सु॒गा अ॒पश्च॑कर॒ वज्र॑बाहुः ॥

English Transliteration

vadhīṁ vṛtram maruta indriyeṇa svena bhāmena taviṣo babhūvān | aham etā manave viśvaścandrāḥ sugā apaś cakara vajrabāhuḥ ||

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Pad Path

वधी॑म्। वृ॒त्रम्। म॒रु॒तः॒। इ॒न्द्रि॒येण॑। स्वेन॑। भामे॑न। त॒वि॒षः। ब॒भू॒वान्। अ॒हम्। ए॒ताः। मन॑वे। वि॒श्वऽच॑न्द्राः। सु॒ऽगाः। अ॒पः। च॒क॒र॒। वज्र॑ऽबाहुः ॥ १.१६५.८

Rigveda » Mandal:1» Sukta:165» Mantra:8 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:25» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (मरुतः) प्राण के समान प्रिय विद्वानो ! (वज्रबाहुः) जिसके हाथ में वज्र है (बभूवान्) ऐसा होनेवाला (अहम्) मैं जैसे सूर्य (वृत्रम्) मेघ को मार (अपः) जलों को (सुगाः) सुन्दर जानेवाले करता है वैसे (स्वेन) अपने (भामेन) क्रोध से और (इन्द्रियेण) मन से (तविषः) बल से शत्रुओं को (वधीम्) मारता हूँ और (मनवे) विचारशील मनुष्य के लिये (विश्वश्चन्द्राः) समस्त सुवर्णादि धन जिनसे होते (एताः) उन लक्ष्मियों को (चकर) करता हूँ ॥ ८ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य से प्रेरित वर्षा से समस्त जगत् जीवता है, वैसे शत्रुओं से होते हुए विघ्नों को निवारने से सब प्राणी जीवते हैं ॥ ८ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मरुतो वज्रबाहुर्बभूवानहं यथा सूर्यो वृत्रं हत्वाऽपः सुगाः करोति तथा स्वेन भामेनेन्द्रियेण तविषश्च शत्रून् वधीं मनवे विश्वश्चन्द्रा एताश्श्रियश्चकर ॥ ८ ॥

Word-Meaning: - (वधीम्) हन्मि (वृत्रम्) मेघम् (मरुतः) प्राणवत् प्रियाः (इन्द्रियेण) मनसा (स्वेन) स्वकीयेन (भामेन) क्रोधेन (तविषः) बलात् (बभूवान्) भविता (अहम्) (एताः) (मनवे) मननशीलाय मनुष्याय (विश्वश्चन्द्राः) विश्वानि चन्द्राणि सुवर्णानि याभ्यस्ताः (सुगाः) सुष्ठुगच्छन्ति ताः (अपः) जलानि (चकर) करोमि (वज्रबाहुः) वज्रो बाहौ यस्य सः ॥ ८ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्यप्रेरितया वृष्ट्या सर्वं जगज्जीवति तथा शत्रुविघ्ननिवारणेन सर्वे प्राणिनो जीवन्ति ॥ ८ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी सूर्यामुळे वृष्टी होऊन संपूर्ण जग जगते. तसे शत्रूंचे निवारण करून सर्व प्राणी जिवंत राहतात. ॥ ८ ॥