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ब्रह्मा॑णि मे म॒तय॒: शं सु॒तास॒: शुष्म॑ इयर्ति॒ प्रभृ॑तो मे॒ अद्रि॑:। आ शा॑सते॒ प्रति॑ हर्यन्त्यु॒क्थेमा हरी॑ वहत॒स्ता नो॒ अच्छ॑ ॥

English Transliteration

brahmāṇi me matayaḥ śaṁ sutāsaḥ śuṣma iyarti prabhṛto me adriḥ | ā śāsate prati haryanty ukthemā harī vahatas tā no accha ||

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Pad Path

ब्रह्मा॑णि। मे॒। म॒तयः॑। शम्। सु॒तासः॑। शुष्मः॑। इ॒य॒र्ति॒। प्रऽभृ॑तः। मे॒। अद्रिः॑। आ। शा॒स॒ते॒। प्रति॑। ह॒र्य॒न्ति॒। उ॒क्था। इ॒मा। हरी॒ इति॑। व॒ह॒तः॒। ता। नः॒। अच्छ॑ ॥ १.१६५.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:165» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:24» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (प्रभृतः) शास्त्रविज्ञान से भरा हुआ (शुष्मः) बलवान् (अद्रिः) मेघ के समान (मे) मेरा उपदेश सबको (इयर्त्ति) प्राप्त होता, वा जैसे (सुतासः) प्राप्त हुए (मतयः) मननशील मनुष्य (मे) मेरे (ब्रह्माणि) धनों वा अन्नों को और (शम्) सुख को (आशासते) चाहते हैं, वा (इमा) इन (उक्था) कहने के योग्य पदार्थों की (प्रति, हर्यन्ति) प्रीति से कामना करते हैं, वा जैसे (ता) वे (हरी) धारण-आकर्षण गुण (नः) हम लोगों को (अच्छ) अच्छा (वहतः) प्राप्त होते हैं, वैसे तुम सब होओ ॥ ४ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो उदार हैं वे मेघ के समान सबके लिये समान सुखों को वर्षाते हैं, सबके लिये विद्यादान की कामना करते हैं। जैसे अपने को सुख की इच्छा करते हैं वैसे औरों को सुख करने और दुःखों का विनाश करने को सब चाहैं ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मनुष्या यथा प्रभृतः शुष्मोऽद्रिर्मेघ इव मे उपदेशः सर्वानियर्त्ति। तथा सुतासो मतयो मे ब्रह्माणि शं चाशासते। इमोक्था प्रति हर्यन्ति यथा ता हरी नोऽस्मानच्छ वहतस्तथा यूयं भवत ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (ब्रह्माणि) धनान्यन्नानि वा (मे) मम (मतयः) मननशीला मनुष्याः (शम्) सुखम् (सुतासः) प्राप्ताः (शुष्मः) बलवान् (इयर्त्ति) प्राप्नोति (प्रभृतः) (मे) मम (अद्रिः) मेघः (आ) (शासते) इच्छन्ति (प्रति) (हर्यन्ति) कामयन्ते (उक्था) वक्तुं योग्यानि (इमा) इमानि (हरी) धारणकर्षणगुणौ (वहतः) प्राप्नुतः (ता) तौ (नः) अस्मान् (अच्छ) सम्यक् ॥ ४ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। य उदारास्ते मेघवत् सर्वेभ्यः सुखानि वर्षन्ति सर्वेभ्यो विद्यादानं कामयन्ते। यथाऽऽत्मसुखमिच्छन्ति तथा परेषां सुखानि कर्त्तुं दुःखानि विनाशयितुं सर्व इच्छन्तु ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे उदार आहेत ते मेघाप्रमाणे सगळ्यांच्या सुखासाठी वृष्टी करतात, सर्वांसाठी विद्यादानाची कामना करतात. जशी आपल्या सुखाची इच्छा करतात तशी इतरांच्या सुखाची कामना करावी व दुःखाचा विनाश करण्याची इच्छा बाळगावी. ॥ ४ ॥