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कस्य॒ ब्रह्मा॑णि जुजुषु॒र्युवा॑न॒: को अ॑ध्व॒रे म॒रुत॒ आ व॑वर्त। श्ये॒नाँ इ॑व॒ ध्रज॑तो अ॒न्तरि॑क्षे॒ केन॑ म॒हा मन॑सा रीरमाम ॥

English Transliteration

kasya brahmāṇi jujuṣur yuvānaḥ ko adhvare maruta ā vavarta | śyenām̐ iva dhrajato antarikṣe kena mahā manasā rīramāma ||

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Pad Path

कस्य॑। ब्रह्मा॑णि। जु॒जु॒षुः॒। युवा॑नः। कः। अ॒ध्व॒रे। म॒रुतः॑। आ। व॒व॒र्त॒। श्ये॒नान्ऽइ॑व। ध्रज॑तः। अ॒न्तरि॑क्षे। केन॑। म॒हा। मन॑सा। री॒र॒मा॒म॒ ॥ १.१६५.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:165» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:24» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (मरुतः) पवनों के समान वेगयुक्त (युवानः) ब्रह्मचर्य और विद्या से युवावस्था को प्राप्त विद्वान् (कस्य) किसके (ब्रह्माणि) वृद्धि को प्राप्त होते जो अन्न वा धन उनको (जुजुषुः) सेवते हैं और (कः) कौन इस (अध्वरे) न नष्ट करने योग्य धर्मयुक्त व्यवहार में (आ, ववर्त्त) अच्छे प्रकार वर्त्तमान है, हम लोग (केन) कौन (महा) बड़े (मनसा) मन से (ध्रजतः) जानेवाले (श्येनानिव) घोड़ों के समान किनको लेकर (अन्तरिक्षे) अन्तरिक्ष में (रीरमाम) सबको रमावें ॥ २ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे वायु संसारस्थ पदार्थों को सेवन करते हैं, वैसे ब्रह्मचर्य और विद्या के बोध से परम श्री को सेवें। जैसे अन्तरिक्ष में उड़ते हुए श्येनादि पक्षियों को देखते हैं, वैसे ही भूगोल के साथ हम लोग आकाश में रमें और सबको रमावें, इसको विद्वान् ही जान सकते हैं ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

ये मरुतइव युवानो विद्वांसः कस्य ब्रह्माणि जुजुषुः। कोऽस्मिन्नध्वर आववर्त्त वयं केन महा मनसा ध्रजतो श्येनानिव कान् गृहीत्वाऽन्तरिक्षे रीरमाम ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (कस्य) (ब्रह्माणि) बृहन्ति यानि धनान्यन्नानि वा तानि। ब्रह्मेति धनना०। निघं० २। १०। अन्ननाम च० निघं० २। ७। (जुजुषुः) सेवन्ते। अत्र बहुलं छन्दसीति शपः श्लुः। (युवानः) ब्रह्मचर्येण विद्यया च प्राप्तयौवनाः (कः) (अध्वरे) अहिंसनीये धर्म्ये व्यवहारे (मरुतः) वायव इव (आ) समन्तात् (ववर्त्त) वर्त्तते। अत्रापि शपः श्लुस्तस्य स्थाने तप् च। (श्येनानिव) अश्वानिव। श्येनास इत्यश्वना०। निघं० १। १४। (ध्रजतः) गच्छतः (अन्तरिक्षे) आकाशे (केन) (महा) महता (मनसा) (रीरमाम) सर्वान् रमयेम ॥ २ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा वायवो जगत्स्थान् पदार्थान् सेवन्ते तथा ब्रह्मचर्यविद्याबोधाभ्यां परमश्रियं सेवन्ताम्। यथाऽन्तरिक्षे उड्डीयमानान् श्येनादीन् पक्षिणः पश्यन्ति तथैव सभूगोला वयमाकाशे रमेमहि सर्वान् रमयामः। एतत् ज्ञातुं विद्वांस एव शक्नुवन्ति ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे वायू जगातील पदार्थांचे सेवन करतात तसे ब्रह्मचर्य व विद्या यांच्या बोधाने परम श्रीचा स्वीकार करावा. जसे अंतरिक्षात उडणाऱ्या श्येन इत्यादी पक्ष्यांना (आम्ही) पाहतो तसेच भूगोलावरही आम्ही आकाशात रमावे व सर्वांना रमवावे, हे विद्वानच जाणू शकतात. ॥ २ ॥