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ए॒वेदे॒ते प्रति॑ मा॒ रोच॑माना॒ अने॑द्य॒: श्रव॒ एषो॒ दधा॑नाः। सं॒चक्ष्या॑ मरुतश्च॒न्द्रव॑र्णा॒ अच्छा॑न्त मे छ॒दया॑था च नू॒नम् ॥

English Transliteration

eved ete prati mā rocamānā anedyaḥ śrava eṣo dadhānāḥ | saṁcakṣyā marutaś candravarṇā acchānta me chadayāthā ca nūnam ||

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Pad Path

ए॒व। इत्। ए॒ते। प्रति॑। मा॒। रोच॑मानाः। अने॑द्यः। श्रवः॑। आ। इषः॑। दधा॑नाः। स॒म्ऽचक्ष्य॑। म॒रु॒तः॒। च॒न्द्रऽव॑र्णाः। अच्छा॑न्त। मे॒। छ॒दया॑थ। च॒। नू॒नम् ॥ १.१६५.१२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:165» Mantra:12 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:26» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (मरुतः) प्राणों के समान प्रिय विद्वान् जनो ! जैसे (इषः) इच्छाओं को (आ, दधानाः) अच्छे प्रकार धारण किये हुए (मा, इत्) मेरे ही (प्रति, रोचमानाः) प्रति प्रकाशमान होते हुए (एते) ये तुम (अनेद्यः) प्रशंसनीय (श्रवः) सुनने के साधन शास्त्र को (संचक्ष्य) पढ़ा वा उसका उपदेशमात्र कर (चन्द्रवर्णाः) चन्द्रमा के समान उज्ज्वल कान्तिवाले हुए मुझे (अच्छान्त) विद्या से ढाँपते हुए वैसे (एव) ही अब (च) भी (नूनम्) निश्चय से (मे, छदयाथ) विद्याओं से आच्छादित करो, मेरी अविद्या को दूर करो और विद्या देओ ॥ १२ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो स्त्री-पुरुषों को विद्याओं में प्रकाशित और उन्हें प्रशंसित गुण, कर्म, स्वभाववाले कर धर्मयुक्त व्यवहारों में लगाते हैं, वे सबके सुभूषित करनेवाले हों ॥ १२ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मरुतो यथेष आदधाना मेत्प्रति रोचमाना एते यूयमनेद्यः श्रवः संचक्ष्य चन्द्रवर्णास्सन्तो मामच्छान्त तथैवेदानीं च नूनं मे छदयाथ ॥ १२ ॥

Word-Meaning: - (एव) निश्चये (इत्) एव (एते) (प्रति) (मा) माम् (रोचमानाः) (अनेद्यः) प्रशस्यम्। अनेद्य इति प्रशस्यना०। निघं० ३। ८। (श्रवः) शृण्वन्ति येन तच्छास्त्रम् (आ) (इषः) इच्छाः (दधानाः) धरन्तः (संचक्ष्य) सम्यगध्याप्योपदिश्य वा। अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः। (मरुतः) प्राणवत् प्रिया विद्वांसः (चन्द्रवर्णाः) चन्द्रस्य वर्ण इव वर्णो येषान्ते (अच्छान्त) विद्यया अच्छादयन्तः (मे) मम (छदयाथ) अविद्यां दूरीकुरुत (च) विद्यां दत्त (नूनम्) निश्चितम् ॥ १२ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये स्त्रीपुरुषान्विद्यासु प्रदीप्य प्रशस्तगुणकर्मस्वभावान् कृत्वा धर्म्येषु प्रयुञ्जते ते विश्वस्याऽलङ्कर्त्तारस्स्युः ॥ १२ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे स्त्री-पुरुषांना विद्येमध्ये प्रकाशित करून त्यांना श्रेष्ठ गुण, कर्म स्वभावाचे बनवतात व धर्मयुक्त व्यवहारात लावतात, त्यांनी सर्वांना विभूषित करावे. ॥ १२ ॥