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एक॑स्य चिन्मे वि॒भ्व१॒॑स्त्वोजो॒ या नु द॑धृ॒ष्वान्कृ॒णवै॑ मनी॒षा। अ॒हं ह्यु१॒॑ग्रो म॑रुतो॒ विदा॑नो॒ यानि॒ च्यव॒मिन्द्र॒ इदी॑श एषाम् ॥

English Transliteration

ekasya cin me vibhv astv ojo yā nu dadhṛṣvān kṛṇavai manīṣā | ahaṁ hy ugro maruto vidāno yāni cyavam indra id īśa eṣām ||

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Pad Path

एक॑स्य। चि॒त्। मे॒। वि॒ऽभु। अ॒स्तु॒। ओजः॑। या। नु। द॒धृ॒ष्वान्। कृ॒णवै॑। म॒नी॒षा। अ॒हम्। हि। उ॒ग्रः। म॒रु॒तः॒। विदा॑नः। यानि॑। च्यव॑म्। इन्द्रः॑। इत्। ई॒शे॒। ए॒षा॒म् ॥ १.१६५.१०

Rigveda » Mandal:1» Sukta:165» Mantra:10 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:25» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (मरुतः) पवनों के समान वर्त्तमान सज्जनो ! जैसे (एकस्य) एक (चित्) ही (मे) मेरे को (विभु) व्यापक (ओजः) बल (अस्तु) हो और (या) जिनको (दधृष्वान्) अच्छे प्रकार सहनेवाला मैं होऊँ वैसे वह बल (हि) निश्चय से तुम्हारा हो और उनका सहन तुम करो। जैसे (अहम्) मैं (मनीषा) बुद्धि से (नु) शीघ्र (कृणवै) विद्या कर सकूँ और (उग्रः) तीव्र (विदानः) विद्वान् (इन्द्र) दुःख का छिन्न-भिन्न करनेवाला होता हुआ (यानि) जिन पदार्थों को (च्यवम्) प्राप्त होऊँ और (एषाम्, इत्) इन्हीं प्राणियों का (ईशे) स्वामी होऊँ वैसे तुम वर्त्तो ॥ १० ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे जगदीश्वर अनन्त पराक्रमी और व्यापक है, वैसे विद्वान् जन समस्त शास्त्र और धर्मकृत्यों में व्याप्त होवें और न्यायाधीश होकर इन मनुष्यादि के सुखों को संपादन करें ॥ १० ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मरुतो यथैकस्य चिन्मे विभ्वोजोऽस्तु या दधृष्वानहं तथा तद्धि वोऽस्तु तानि सहत यथाहं मनीषा नु विद्या कृणवै उग्रो विदान इन्द्रः सन् यानि च्यवमेषामिदीशे च तथा यूयं वर्त्तध्वम् ॥ १० ॥

Word-Meaning: - (एकस्य) (चित्) अपि (मे) मम (विभु) व्यापकम् (अस्तु) भवतु (ओजः) बलम् (या) यानि (नु) सद्यः (दधृष्वान्) प्रसोढा (कृणवै) कर्त्तुं शक्नुयाम् (मनीषा) प्रज्ञया (अहम्) (हि) किल (उग्रः) तीव्रः (मरुतः) मरुद्वद्वर्त्तमानाः (विदानः) विद्वान् (यानि) (च्यवम्) प्राप्नुयाम् (इन्द्रः) दुःखच्छेत्ता (इत्) एव (ईशे) (एषाम्) प्राणिनाम् ॥ १० ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा जगदीश्वरोऽनन्तपराक्रमवान् व्यापकोऽस्ति तथा विद्वांसः सर्वेषु शास्त्रेषु धर्मकृत्येषु च व्याप्नुवन्तु न्यायाधीशा भूत्वैतेषां मनुष्यादीनां सुखं संपादयन्तु ॥ १० ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा जगदीश्वर अनन्त पराक्रमी व व्यापक आहे तसे विद्वान लोकांनी संपूर्ण शास्त्र व धर्मकृत्यात व्याप्त व्हावे व न्यायाधीश बनून माणसांना सुख द्यावे. ॥ १० ॥