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यस्ते॒ स्तन॑: शश॒यो यो म॑यो॒भूर्येन॒ विश्वा॒ पुष्य॑सि॒ वार्या॑णि। यो र॑त्न॒धा व॑सु॒विद्यः सु॒दत्र॒: सर॑स्वति॒ तमि॒ह धात॑वे कः ॥

English Transliteration

yas te stanaḥ śaśayo yo mayobhūr yena viśvā puṣyasi vāryāṇi | yo ratnadhā vasuvid yaḥ sudatraḥ sarasvati tam iha dhātave kaḥ ||

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Pad Path

यः। ते॒। स्तनः॑। श॒श॒यः। यः। म॒यः॒ऽभूः। येन॑। विश्वा॑। पुष्य॑सि। वार्या॑णि। यः। र॒त्न॒ऽधाः। व॒सु॒ऽवित्। यः। सु॒ऽदत्रः॑। सर॑स्वति। तम्। इ॒ह। धात॑वे। क॒रिति॑ कः ॥ १.१६४.४९

Rigveda » Mandal:1» Sukta:164» Mantra:49 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:23» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:49


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर यहाँ विदुषी स्त्री के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (सरस्वति) विदुषी स्त्री ! (ते) तेरा (यः) जो (शशयः) सोतासा शान्त और (यः) जो (मयोभूः) सुख की भावना करनेहारा (स्तनः) स्तन के समान वर्त्तमान शुद्ध व्यवहार (येन) जिससे तू (विश्वा) समस्त (वार्याणि) स्वीकार करने योग्य विद्या आदि वा धनों को (पुष्यसि) पुष्ट करती है (यः) जो (रत्नधाः) रमणीय वस्तुओं को धारण करने और (वसुवित्) धनों को प्राप्त होनेवाला और (यः) जो (सुदत्रः) सुदत्र अर्थात् जिससे अच्छे-अच्छे देने हों (तम्) उस अपने स्तन को (इह) यहाँ गृहाश्रम में (धातवे) सन्तानों के पीने को (कः) कर ॥ ४९ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे माता अपने स्तन के दूध से सन्तान की रक्षा करती है, वैसे विदुषी स्त्री सब कुटुम्ब की रक्षा करती है, जैसे सुन्दर घृतान्न पदार्थों के भोजन करने से शरीर बलवान् होता है, वैसे माता की सुशिक्षा को पाकर आत्मा पुष्ट होता है ॥ ४९ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरत्र विदुषीविषयमाह ।

Anvay:

हे सरस्वति विदुषि स्त्रि ते यः शशयो यो मयोभूश्च स्तनो येन त्वं विश्वा वार्याणि पुष्यसि यो रत्नधा वसुविद्यश्च सुदत्रोऽस्ति तमिह धातवे कः ॥ ४९ ॥

Word-Meaning: - (यः) (ते) तव (स्तनः) स्तनइव वर्त्तमानः शुद्धो व्यवहारः (शशयः) शयानइव (यः) (मयोभूः) सुखं भावुकः (येन) (विश्वा) सर्वाणि (पुष्यसि) (वार्याणि) स्वीकर्त्तुमर्हाणि विद्यादीनि धनानि वा (यः) (रत्नधाः) रत्नानि रमणीयानि वस्तूनि दधाति (वसुवित्) वसूनि विन्दति प्राप्नोति (यः) (सुदत्रः) सुष्ठु दत्राणि दानानि यस्मात् सः (सरस्वति) वागिव वर्त्तमाने (तम्) (इह) (धातवे) धातुं पातुम् (कः) कुरु। अयं मन्त्रो निरुक्ते व्याख्यातः । निरु० ६। १४। [*] ॥ ४९ ॥ [*अत्र निरुक्तेऽस्य मन्त्रस्य व्याख्यानं न विद्यते। (सुदत्रः) इति पदस्य निर्वचनं तु दरीदृश्यते ॥ सं० ॥ ]
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा माता स्तनपयसा सन्तानं पाति तथा विदुषी स्त्री सर्वं कुटुम्बं रक्षति यथा सुभोजनेनं शरीरं पुष्टं जायते तथा मातुः सुशिक्षां प्राप्याऽत्मा पुष्टो जायते ॥ ४९ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी माता आपल्या स्तनपानाने संततीचे रक्षण करते, तसे विदुषी स्त्री सर्व कुटुंबाचे रक्षण करते. जसे चांगल्या घृतान्न पदार्थांचे भोजन करण्याने शरीर बलवान, पुष्ट होते तसे मातेचे सुशिक्षण प्राप्त करून आत्मा पुष्ट होतो. ॥ ४९ ॥