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सू॒य॒व॒साद्भग॑वती॒ हि भू॒या अथो॑ व॒यं भग॑वन्तः स्याम। अ॒द्धि तृण॑मघ्न्ये विश्व॒दानीं॒ पिब॑ शु॒द्धमु॑द॒कमा॒चर॑न्ती ॥

English Transliteration

sūyavasād bhagavatī hi bhūyā atho vayam bhagavantaḥ syāma | addhi tṛṇam aghnye viśvadānīm piba śuddham udakam ācarantī ||

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Pad Path

सु॒य॒व॒स॒ऽअत्। भग॑ऽवती। हि। भू॒याः। अथो॒ इति॑। व॒यम्। भग॑ऽवन्तः। स्या॒म॒। अ॒द्धि। तृण॑म्। अ॒घ्न्ये॒। वि॒श्व॒ऽदानी॑म्। पिब॑। शु॒द्धम्। उ॒द॒कम्। आ॒ऽचर॑न्ती ॥ १.१६४.४०

Rigveda » Mandal:1» Sukta:164» Mantra:40 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:21» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:40


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब विदुषी स्त्री के विषय में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (अध्न्ये) न हनने योग्य गौ के समान वर्त्तमान विदुषी ! तू (सुयवसात्) सुन्दर सुखों को भोगनेवाली (भगवती) बहुत ऐश्वर्यवती (भूयाः) हो कि (हि) जिस कारण (वयम्) हम लोग (भगवन्तः) बहुत ऐश्वर्ययुक्त (स्याम) हों। जैसे गौ (तृणम्) तृण को खा (शुद्धम्) शुद्ध (उदकम्) जल को पी और दूध देकर बछड़े आदि को सुखी करती है वैसे (विश्वदानीम्) समस्त जिसमें दान उस क्रिया का (आचरन्ती) सत्य आचरण करती हुई (अथो) इसके अनन्तर सुख को (अद्धि) भोग और विद्यारस को (पिब) पी ॥ ४० ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जबतक माताजन वेदवित् न हों तबतक उनमें सन्तान भी विद्यावान् नहीं होते हैं। जो विदुषी हो स्वयंवर विवाह कर सन्तानों को उत्पन्न कर उनको अच्छी शिक्षा देकर उन्हें विद्वान् करती हैं, वे गौओं के समान समस्त जगत् को आनन्दित करती हैं ॥ ४० ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विदुषीविषयमाह ।

Anvay:

हे अध्न्ये त्वं सुयवासाद्भगवती भूया हि यतो वयं भगवन्तस्स्याम। यथा गौस्तृणं जग्ध्वा शुद्धमुदकं पीत्वा दुग्धं दत्वा वत्सादीन् सुखयति तथा विश्वदानीमाचरन्ती सत्यथो सुखमद्धि विद्यारसं पिब ॥ ४० ॥

Word-Meaning: - (सुयवसात्) या शोभनानि यवसानि सुखानि अत्ति सा (भगवती) बह्वैश्वर्ययुक्ता विदुषी (हि) किल (भूयाः) (अथो) (वयम्) (भगवन्तः) बह्वैश्वर्ययुक्ताः (स्याम) भवेम (अद्धि) अशान (तृणम्) (अघ्न्ये) गौरिव वर्त्तमाने (विश्वदानीम्) विश्वं समग्रं दानं यस्यास्ताम् (पिब) (शुद्धम्) पवित्रम् (उदकम्) जलम् (आचरन्ती) सत्याचरणं कुर्वती। अयं निरुक्ते व्याख्यातः। निरु० ११। ४४ ॥ ४० ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यावन्मातरो वेदविदो न स्युस्तावत्तदपत्यान्यपि विद्यावन्ति न भवन्ति। या विदुष्यो भूत्वा स्वयंवरं विवाहं कृत्वा सन्तानानुत्पाद्य सुशिक्ष्य विदुषः कुर्वन्ति ता गाव इव सर्वे जगदाह्लादयन्ति ॥ ४० ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जोपर्यंत माता वेद जाणत नाहीत तोपर्यंत त्यांची संतती ही विद्यायुक्त होत नाही. ज्या स्त्रिया विदूषी बनून स्वयंवर विवाह करून संतती उत्पन्न करतात व त्यांना सुशिक्षण देऊन विद्वान बनवितात त्या गाईप्रमाणे संपूर्ण जगाला आनंदित करतात. ॥ ४० ॥