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न वि जा॑नामि॒ यदि॑वे॒दमस्मि॑ नि॒ण्यः संन॑द्धो॒ मन॑सा चरामि। य॒दा माग॑न्प्रथम॒जा ऋ॒तस्यादिद्वा॒चो अ॑श्नुवे भा॒गम॒स्याः ॥

English Transliteration

na vi jānāmi yad ivedam asmi niṇyaḥ saṁnaddho manasā carāmi | yadā māgan prathamajā ṛtasyād id vāco aśnuve bhāgam asyāḥ ||

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Pad Path

न। वि। जा॒ना॒मि॒। यत्ऽइ॑व। इ॒दम्। अस्मि॑। नि॒ण्यः। सम्ऽन॑द्धः। मन॑सा। च॒रा॒मि॒। य॒दा। मा। आ। अग॑न्। प्र॒थ॒म॒ऽजाः। ऋ॒तस्य॑। आत्। इत्। वा॒चः। अ॒श्नु॒वे॒। भा॒गम्। अ॒स्याः ॥ १.१६४.३७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:164» Mantra:37 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:21» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:37


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पूर्वोक्त विषय को प्रकारान्तर से कहते हैं ।

Word-Meaning: - (यदा) जब (प्रथमजाः) उपादान कारण प्रकृति से उत्पन्न हुए पूर्वोक्त महत्तत्त्वादि (मा) मुझ जीव को (आ, अगन्) प्राप्त हुए अर्थात् स्थूल शरीरावस्था हुई (आत्, इत्) उसके अनन्तर ही (ऋतस्य) सत्य और (अस्याः) इस (वाचः) वाणी के (भागम्) भाग को विद्या विषय को मैं (अश्नुवे) प्राप्त होता हूँ। जबतक (इदम्) इस शरीर को प्राप्त नहीं (अस्मि) होता हूँ तबतक उस विषय को (यदिव) जैसे के वैसा (न) नहीं (वि, जानामि) विशेषता से जानता हूँ। किन्तु (मनसा) विचार से (संनद्धः) अच्छा बन्धा हुआ (निण्यः) अन्तर्हित अर्थात् भीतर उस विचार को स्थिर किये (चरामि) विचरता हूँ ॥ ३७ ॥
Connotation: - अल्पज्ञता और अल्पशक्तिमत्ता के कारण साधनरूप इन्द्रियों के विना जीव सिद्ध करने योग्य वस्तु को नहीं ग्रहण कर सकता, जब श्रोत्रादि इन्द्रियों को प्राप्त होता है तब जानने को योग्य होता है, जबतक विद्या से सत्य पदार्थ को नहीं जानता तबतक अभिमान करता हुआ पशु के समान विचरता है ॥ ३७ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

उक्तं प्रकारान्तरेणाह ।

Anvay:

यदा प्रथमजा मागन्नादिदृतस्यास्या वाचो भागमहमश्नुवे। यावदिदं प्राप्तो नास्मि तावदुक्तं यदिव न विजानामि मनसा संनद्धो निण्यश्चरामि ॥ ३७ ॥

Word-Meaning: - (न) निषेधे (वि) विशेषेण (जानामि) (यदिव) सङ्गतमिव (इदम्) जगत् (अस्मि) (निण्यः) अन्तर्हितः। अत्र वर्णव्यत्ययेन णत्वम्। निण्य इति निर्णीतान्तर्हितना०। निघं० ३। २५। (सन्नद्धः) सम्यग्बद्धः (मनसा) अन्तःकरणेन (चरामि) गच्छामि (यदा) (मा) मां जीवम् (आ) (अगन्) समन्तात्प्राप्ताः (प्रथमजाः) प्रथमात् कारणाज्जाताः पूर्वोक्ता महत्तत्त्वादयः (ऋतस्य) सत्यस्य (आत्) अनन्तरम् (इत्) एव (वाचः) वाण्याः (अश्नुवे) प्राप्नोमि (भागम्) (अस्याः) ॥ ३७ ॥
Connotation: - अल्पज्ञाऽल्पशक्तिमत्त्वात् साधनैर्विना जीवः साध्यं ग्रहीतुं न शक्नोति। यदा श्रोत्रादीनि प्राप्नोति तदा वेदितुमर्हति। यावद्विद्यया सत्यं न जानाति तावदभिमानं कुर्वन् पशुरिव विचरति ॥ ३७ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - अल्पज्ञता व अल्पशक्तीमुळे साधनरूपी इंद्रियांशिवाय जीव कोणत्याही वस्तूचे ग्रहण करू शकत नाही. जेव्हा श्रोत्र इत्यादी इंद्रिये प्राप्त होतात तेव्हा तो जाणण्यायोग्य बनतो. जोपर्यंत विद्येने सत्य पदार्थ जाणत नाही तोपर्यंत अभिमानी बनून पशूप्रमाणे भटकतो. ॥ ३७ ॥