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उप॒ प्रागा॑त्पर॒मं यत्स॒धस्थ॒मर्वाँ॒ अच्छा॑ पि॒तरं॑ मा॒तरं॑ च। अ॒द्या दे॒वाञ्जुष्ट॑तमो॒ हि ग॒म्या अथा शा॑स्ते दा॒शुषे॒ वार्या॑णि ॥

English Transliteration

upa prāgāt paramaṁ yat sadhastham arvām̐ acchā pitaram mātaraṁ ca | adyā devāñ juṣṭatamo hi gamyā athā śāste dāśuṣe vāryāṇi ||

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Pad Path

उप॑। प्र। अ॒गा॒त्। प॒र॒मम्। यत्। स॒धऽस्थ॑म्। अर्वा॑न्। अच्छ॑। पि॒तर॑म्। मा॒तर॑म्। च॒। अ॒द्य। दे॒वान्। जुष्ट॑ऽतमः। हि। ग॒म्याः। अथ॑। आ। शा॒स्ते॒। दा॒शुषे॑। वार्या॑णि ॥ १.१६३.१३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:163» Mantra:13 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:13» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (यत्) जो (देवान्) विद्वान् वा दिव्य भोग और गुणों को (जुष्टतमः) अतीव सेवता हुआ (अर्वान्) अग्नि आदि पदार्थरूपी घोड़ों को (अद्य) आज के दिन (परमम्) उत्तम (सधस्थम्) एक साथ के स्थान को (मातरम्) उत्पन्न करनेवाली माता (पितरं, च) और जन्म करानेवाले पिता वा अध्यापक को (अच्छ, उप, प्रागात्) अच्छे प्रकार सब ओर से प्राप्त होता (अथ) अथवा (दाशुषे) देनेवाले के लिये (वार्य्याणि) स्वीकार करने योग्य सुख और (हि) निश्चय से (गम्याः) गमन करने योग्य प्यारी स्त्रियों वा प्राप्त होने योग्य क्रियाओं की (आ, शास्ते) आज्ञा करता है, वह अत्यन्त सुख को प्राप्त होता है ॥ १३ ॥
Connotation: - जो माता, पिता और आचार्य से शिक्षा पाये प्रशंसित स्थानों के निवासी विद्वानों के सङ्ग की प्रीति रखनेवाले सबके सुख देनेवाले वर्त्तमान हैं, वे यहाँ उत्तम आनन्द को प्राप्त होते हैं ॥ १३ ॥इस सूक्त में विद्वान् और बिजुली के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥यह एकसौ तिरेसठवाँ सूक्त और तेरहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

यद्यो देवान् जुष्टतमोऽर्वानद्य परमं सधस्थं मातरं पितरं चाच्छोपप्रागादथ दाशुषे वार्याणि हि गम्याः प्रियाश्चाशास्ते सोऽत्यन्तं सुखमश्नुते ॥ १३ ॥

Word-Meaning: - (उप) (प्र) (अगात्) गच्छन्ति (परमम्) प्रकृष्टम् (यत्) यः (सधस्थम्) सहस्थानम् (अर्वान्) अग्न्याद्यश्वान् (अच्छ) सम्यक्। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (पितरम्) जनकमध्यापकं वा (मातरम्) जननीं विद्यां वा (च) (अद्य) अस्मिन् दिने। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (देवान्) विदुषो दिव्यान् भोगान् गुणान् वा (जुष्टतमः) अतिशयेन सेवमानः (हि) किल (गम्याः) गन्तुं योग्याः (अथ) (आ) (शास्ते) इच्छति (दाशुषे) दात्रे (वार्याणि) वर्त्तुं योग्यानि सुखानि ॥ १३ ॥
Connotation: - ये मातृपित्राऽऽचार्यैः प्राप्तशिक्षाः प्रशस्तस्थाननिवासिनो विद्वत्सङ्गप्रियाः सर्वेषां सुखदातारो वर्त्तन्ते तेऽत्रोत्तममानन्दं लभन्ते ॥ १३ ॥ अस्मिन् सूक्ते विद्वद्विद्युद्गुणवर्णनादेतत्सूक्तार्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह संगतिर्वेद्या ॥इति त्रिषष्ट्युत्तरं शततमं सूक्तं त्रयोदशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे माता-पिता व आचार्यांपासून शिक्षण घेतलेले, प्रशंसित स्थानांचे निवासी, विद्वानांबरोबर प्रेम ठेवणारे, सर्वांना सुख देणारे असतात. त्यांना अत्यंत आनंद मिळतो. ॥ १३ ॥