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चतु॑स्त्रिंशद्वा॒जिनो॑ दे॒वब॑न्धो॒र्वङ्क्री॒रश्व॑स्य॒ स्वधि॑ति॒: समे॑ति। अच्छि॑द्रा॒ गात्रा॑ व॒युना॑ कृणोत॒ परु॑ष्परुरनु॒घुष्या॒ वि श॑स्त ॥

English Transliteration

catustriṁśad vājino devabandhor vaṅkrīr aśvasya svadhitiḥ sam eti | acchidrā gātrā vayunā kṛṇota paruṣ-parur anughuṣyā vi śasta ||

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Pad Path

चतुः॑ऽत्रिंशत्। वा॒जिनः॑। दे॒वऽब॑न्धोः। वङ्क्रीः॑। अश्व॑स्य। स्वऽधि॑तिः। सम्। ए॒ति॒। अच्छि॑द्रा। गात्रा॑। व॒युना॑। कृ॒णो॒त॒। परुः॑ऽपरुः। अ॒नु॒ऽघुष्य॑। वि। श॒स्त॒ ॥ १.१६२.१८

Rigveda » Mandal:1» Sukta:162» Mantra:18 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:10» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:18


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे विद्वान् जन ! तुम (देवबन्धोः) प्रकाशमान पृथिव्यादिकों के सम्बन्धी (वाजिनः) वेगवाले (अश्वस्य) शीघ्रगामी अग्नि की जो (स्वधितिः) बिजुली (समेति) अच्छे प्रकार जाती है उसको और (चतुस्त्रिंशत्) चौंतीस प्रकार की (वङ्क्रीः) टेढ़ी-बेढ़ी गतियों को (विशस्त) तड़काओ अर्थात् कलों को ताड़ना दे उन गतियों को निकालो। तथा (परुष्परुः) प्रत्येक मर्मस्थल पर (अनुघुष्य) अनुकूलता से कलायन्त्रों का शब्द कराकर (अच्छिद्रा) दो टूंक होने छिन्न-भिन्न होने से रहित (गात्रा) अङ्ग और (वयुना) उत्तम ज्ञान कर्मों को (कृणोत) करो ॥ १८ ॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जिस कारण से बिजुली उत्पन्न होती है, वह कारण सब पृथिव्यादिकों में व्याप्त है। इससे बिजुली की ताड़ना आदि से किसी का अङ्ग-भङ्ग न हो उतनी बिजुली काम में लाओ। जो अग्नि के गुणों को जानकर यथायोग्य क्रिया से उस अग्नि का प्रयोग किया जाय तो कौन काम न सिद्ध होने योग्य हों अर्थात् सभी यथेष्ट काम बनें ॥ १८ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे विद्वांसो यूयं देवबन्धोर्वाजिनोऽश्वस्य या स्वधितिः समेति तां चतुस्त्रिंशद्वङ्क्रीश्च विशस्त परुष्परुरनुघुष्याऽच्छिद्रा मात्रा वयुना कृणोत ॥ १८ ॥

Word-Meaning: - (चतुस्त्रिंशत्) एतत्संख्याकाः (वाजिनः) वेगगुणवतो जलादयः (देवबन्धोः) प्रकाशमानानां पृथिव्यादीनां संबन्धिनः (वङ्क्रीः) कुटिला गतीः (अश्वस्य) शीघ्रगामिनोऽग्नेः (स्वधितिः) विद्युत् (सम्) (एति) गच्छति (अच्छिद्रा) द्विधाभावरहितानि (गात्रा) गात्राण्यङ्गानि (वयुना) प्रज्ञानानि कर्माणि वा (कृणोत) कुरुत (परुष्परुः) प्रति मर्म (अनुघुष्य) आनुकूल्येन शब्दयित्वा। अत्रान्येषामपीति दीर्घः। (वि) (शस्त) ताडयत हिंस्त ॥ १८ ॥
Connotation: - हे मनुष्या यस्मात्कारणाद्विद्युदुत्पद्यते तत्सर्वेषु पृथिव्यादिषु व्याप्तमस्ति अतस्तडित्ताडनादिना कस्यचिदङ्गभङ्गो न भवेत्तावत्तां प्रयुञ्जीध्वं यद्यग्निगुणान् विदित्वा क्रियया संप्रयुञ्जते तर्हि किं कार्यमसाध्यं स्यात् ॥ १८ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! ज्या कारणामुळे विद्युत उत्पन्न होते ते कारण सर्व पृथ्वी इत्यादीमध्ये व्याप्त आहे, त्यामुळे विद्युतच्या मारामुळे एखाद्याचा अंगभंग होता कामा नये तितकी विद्युत कामात आणावी. अग्नीच्या गुणांना जाणून यथायोग्य क्रिया केल्यास कोणते कार्य सिद्ध होऊ शकत नाही? अर्थात् सर्व काम होते. ॥ १८ ॥