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मा त्वा॒ग्निर्ध्व॑नयीद्धू॒मग॑न्धि॒र्मोखा भ्राज॑न्त्य॒भि वि॑क्त॒ जघ्रि॑:। इ॒ष्टं वी॒तम॒भिगू॑र्तं॒ वष॑ट्कृतं॒ तं दे॒वास॒: प्रति॑ गृभ्ण॒न्त्यश्व॑म् ॥

English Transliteration

mā tvāgnir dhvanayīd dhūmagandhir mokhā bhrājanty abhi vikta jaghriḥ | iṣṭaṁ vītam abhigūrtaṁ vaṣaṭkṛtaṁ taṁ devāsaḥ prati gṛbhṇanty aśvam ||

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Pad Path

मा। त्वा॒। अ॒ग्निः। ध्व॒न॒यी॒त्। धू॒मऽग॑न्धिः। मा। उ॒खा। भ्राज॑न्ती। अ॒भि। वि॒क्त॒। जघ्रिः॑। इ॒ष्टम्। वी॒तम्। अ॒भिऽगू॑र्तम्। वष॑ट्ऽकृतम्। तम्। दे॒वासः॑। प्रति॑। गृ॒भ्ण॒न्ति॒। अश्व॑म् ॥ १.१६२.१५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:162» Mantra:15 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:9» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:15


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे विद्वान् ! जिस (इष्टम्) इष्ट अर्थात् जिससे यज्ञ वा सङ्ग किया जाता (वषट्कृतम्) जो क्रिया से सिद्ध किये हुए (वीतम्) व्याप्त होनेवाले (अभिगूर्त्तम्) सब ओर से उद्यमी (अश्वम्) घोड़े के समान शीघ्र पहुँचानेवाले बिजुलीरूप अग्नि को (देवासः) विद्वान् जन (त्वा) तुम्हें (प्रति, गृभ्णन्ति) प्रतीति से ग्रहण कराते हैं (तम्) उसको तुम ग्रहण करो, सो (धूमगन्धिः) धूम में गन्ध रखनेवाला (अग्निः) अग्नि (मा, ध्वनयीत्) मत् ध्वनि दे, मत बहुत शब्द दे और (भ्राजन्ती) प्रकाशमान (उखा) अन्न पकाने की बटलोई (जघ्रिः) अन्न गन्ध लेती हुई अर्थात् जिसके भीतर से भाफ उठ लौटके उसीमें जाती वह (मा, अभि, विक्त) मत अन्न को अपने में से सब ओर अलग करे, उगले ॥ १५ ॥
Connotation: - जो मनुष्य अग्नि वा घोड़े से रथों को चलाते हैं, वे लक्ष्मी से प्रकाशमान होते हैं। जो अग्नि में सुगन्धि आदि पदार्थों को होमते हैं, वे रोग और कष्ट के शब्दों से पीड्यमान नहीं होते हैं ॥ १५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे विद्वन् यमिष्टं वषट्कृतं वीतमभिगूर्त्तमश्वं देवासस्त्वा प्रतिगृभ्णन्ति तं त्वं गृहाण स धूमगन्धिरग्निर्मा ध्वनयीत् भ्राजन्त्युखा जघ्रिर्माभिविक्त ॥ १५ ॥

Word-Meaning: - (मा) (त्वा) त्वाम् (अग्निः) पावकः (ध्वनयीत्) ध्वनयेत् शब्दयेत् (धूमगन्धिः) धूमे गन्धिर्गन्धो यस्य सः (मा) (उखा) पाकस्थाली (भ्राजन्ती) प्रकाशमाना (अभि) (विक्त) विञ्ज्यात् पृथक्कुर्यात् (जघ्रिः) जिघ्रन्ती (इष्टम्) येन इज्यते तम् (वीतम्) व्याप्तिशीलम् (अभिगूर्त्तम्) अभित उद्यमिनम् (वषट्कृतम्) क्रिययां निष्पादितम् (तम्) (देवासः) विद्वांसः (प्रति) (गृभ्णन्ति) ग्राहयन्ति। अत्र णिज्लोपः। (अश्वम्) अश्ववत् शीघ्रं गमयितारम् ॥ १५ ॥
Connotation: - ये मनुष्या अग्निनाऽश्वेन वा यानानि गमयन्ति ते श्रिया भ्राजन्ते येऽग्नौ सुगन्ध्यादिकं द्रव्यं जुह्वति ते रोगार्त्तशब्दैर्न पीडयन्ते ॥ १५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे अग्नी किंवा घोड्यांनी रथ चालवितात त्यांना लक्ष्मी प्राप्त होते. अग्नीमध्ये जी माणसे सुगंधी पदार्थ घालतात ती रोग व वेदनेने पीडित होत नाहीत. ॥ १५ ॥