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एकं॑ चम॒सं च॒तुर॑: कृणोतन॒ तद्वो॑ दे॒वा अ॑ब्रुव॒न्तद्व॒ आग॑मम्। सौध॑न्वना॒ यद्ये॒वा क॑रि॒ष्यथ॑ सा॒कं दे॒वैर्य॒ज्ञिया॑सो भविष्यथ ॥

English Transliteration

ekaṁ camasaṁ caturaḥ kṛṇotana tad vo devā abruvan tad va āgamam | saudhanvanā yady evā kariṣyatha sākaṁ devair yajñiyāso bhaviṣyatha ||

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Pad Path

एक॑म्। च॒म॒सम्। च॒तुरः॑। कृ॒णो॒त॒न॒। तत्। वः॒। दे॒वाः। अ॒ब्रु॒व॒न्। तत्। वः॒। आ। अ॒ग॒म॒म्। सौध॑न्वनाः। यदि॑। ए॒व। क॒रि॒ष्यथ॑। सा॒कम्। दे॒वैः। य॒ज्ञिया॑सः। भ॒वि॒ष्य॒थ॒ ॥ १.१६१.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:161» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:4» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (सौधन्वनाः) उत्तम धनुषों में कुशल ! जिस (एकम्) इकेले (चमसम्) मेघ को (देवाः) विद्वान् जन (वः) तुम लोगों के प्रति (अब्रुवन्) कहें अर्थात् उसके गुणों का उपदेश करें (तत्) उसको तुम लोग (कृणोतन) करो और जिसको (वः) तुम लोगों की उत्तेजना से मैं (आगमम्) प्राप्त होऊँ (तत्) उसको करो, (यदि) जो (देवैः) विद्वानों के (साकम्) साथ (चतुरः) वायु, अग्नि, जल, भूमि इन चारों को पूछो तो अपने काम को सिद्ध (एव) ही (करिष्यथ) करो और (यज्ञियासः) यज्ञ के अनुष्ठान के योग्य (भविष्यथ) होओ ॥ २ ॥
Connotation: - जो विद्वानों की उत्तेजना से प्रश्नोत्तरों से विद्याओं को पाकर उसमें कहे हुए कामों को करते हैं वे विद्वान् होते हैं। पिछले प्रश्नों के यहाँ ये उत्तर हैं कि जो हम लोगों में विद्या में अधिक है वह श्रेष्ठ। जो जितेन्द्रिय है वह अत्यन्त बलवान्। जो अग्नि है वह दूत और जो पुरुषार्थसिद्धि है वह विभूति है ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे सौधन्वना यदेकं चमसं देवा वोऽब्रुवस्तद्यूयं कृणोतन यद्वोऽहमागमं तत् कृणोतन यदि देवैः साकं चतुरः पृच्छत तर्हि स्वकार्यं सिद्धमेव करिष्यथ यज्ञियासश्च भविष्यथ ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (एकम्) असहायम् (चमसम्) मेघम् (चतुरः) वाय्वग्निजलभूमीः (कृणोतन) कुर्यात् (तत्) (वः) युष्मान् (देवाः) विद्वांसः (अब्रुवन्) ब्रूयुरुपदिशेयुः (तत्) (वः) युष्माकं सकाशात् (आ) (अगमम्) प्राप्नुयाम् (सौधन्वनाः) शोभनेषु धनुष्षु कुशलाः (यदि) (एव) (करिष्यथ) (साकम्) (देवैः) विद्वद्भिस्सह (यज्ञियासः) यज्ञमनुष्ठातुमर्हाः (भविष्यथ) ॥ २ ॥
Connotation: - ये विदुषां सकाशात् प्रश्नोत्तरैर्विद्याः प्राप्य तदुक्तानि कर्माणि कुर्वन्ति ते विद्वांसो जायन्ते। पूर्वोक्तप्रश्नानामत्रोत्तराणि योऽस्मासु विद्याऽधिकः स श्रेष्ठः। यो जितेन्द्रियः स बलिष्ठः। योऽग्निः स दूतः। या पुरुषार्थसिद्धिः सा विभूतिश्च ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे विद्वानाच्या साह्याने प्रश्नोत्तराद्वारे विद्या प्राप्त करून त्यात सांगितल्याप्रमाणे कार्य करतात ते विद्वान असतात. मागच्या प्रश्नांची ही उत्तरे आहेत. जो आमच्यामध्ये विद्येत अधिक आहे तो श्रेष्ठ आहे. जो जितेंद्रिय आहे तो अत्यंत बलवान आहे. जो अग्नी आहे तो दूत व जी पुरुषार्थ सिद्धी आहे ती विभूती (अलौकिक सामर्थ्य) आहे. ॥ २ ॥