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दि॒वा या॑न्ति म॒रुतो॒ भूम्या॒ग्निर॒यं वातो॑ अ॒न्तरि॑क्षेण याति। अ॒द्भिर्या॑ति॒ वरु॑णः समु॒द्रैर्यु॒ष्माँ इ॒च्छन्त॑: शवसो नपातः ॥

English Transliteration

divā yānti maruto bhūmyāgnir ayaṁ vāto antarikṣeṇa yāti | adbhir yāti varuṇaḥ samudrair yuṣmām̐ icchantaḥ śavaso napātaḥ ||

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Pad Path

दि॒वा। या॒न्ति॒। म॒रुतः॑। भूम्या॑। अ॒ग्निः। अ॒यम्। वातः॑। अ॒न्तरि॑क्षेण। या॒ति॒। अ॒त्ऽभिः। या॒ति॒। वरु॑णः। स॒मु॒द्रैः। यु॒ष्मान्। इ॒च्छन्तः॑। श॒व॒सः॒। न॒पा॒तः॒ ॥ १.१६१.१४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:161» Mantra:14 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:6» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (शवसः) बलवान् के सन्तान (नपातः) पतन नहीं होता जिनका वे विद्वानो ! तुम जैसे (मरुतः) पवन (दिवा) सूर्यमण्डल के साथ (यान्ति) जाते हैं (अयम्) यह (अग्निः) बिजुली रूप अग्नि (भूभ्या) पृथिवी के साथ और (वातः) लोकों के बीच का वायु (अन्तरिक्षेण) अन्तरिक्ष के साथ (याति) जाता है (वरुणः) उदान वायु (अद्भिः) जल और (समुद्रैः) सागरों के साथ (याति) जाता है वैसे (युष्मान्) तुमको (इच्छन्तः) चाहते हुए जन जावें ॥ १४ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य, पवन, भूमि, अग्नि, वायु, अन्तरिक्ष तथा वरुण और जलों का एक साथ निवास है वैसे मनुष्य विद्या और विद्वानों के साथ वास कर नित्य सुखयुक्त और बली होवें ॥ १४ ॥इस सूक्त में मेधावि के कर्मों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥यह एकसौ इकसठवाँ सूक्त और छठा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे शवसो नपातो विद्वांसो यूयं यथा मरुतो दिवा सह यान्ति। अयमग्निर्भूम्या सह वातोऽन्तरिक्षेण च सह याति वरुणोऽद्भिः समुद्रैः सह याति तथा युष्मानिच्छन्तो जना यान्तु ॥ १४ ॥

Word-Meaning: - (दिवा) सूर्येण सह (यान्ति) गच्छन्ति (मरुतः) सूक्ष्मा वायवः (भूम्या) पृथिव्या (अग्निः) विद्युत् (अयम्) (वातः) मध्यो वायुः (अन्तरिक्षेण) (याति) (अद्भिः) जलैः (याति) (वरुणः) उदानः (समुद्रैः) सागरैः (युष्मान्) (इच्छन्तः) (शवसः) बलवतः (नपातः) न विद्यते पात् पतनं येषां ते ॥ १४ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्यमरुतोर्भूम्याग्न्योर्वाय्वन्तरिक्षयोर्वरुणाऽपां सह वासोऽस्ति तथा मनुष्या विद्याविदुषां सह वासं कृत्वा नित्यसुखबलिष्ठा भवन्त्विति ॥ १४ ॥अस्मिन् सूक्ते मेधाविकर्मवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेदितव्यम् ॥इति एकषष्ट्युत्तरं शततमं सूक्तं षष्ठो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे सूर्य, मरुत, भूमी, अग्नी, वायू, अंतरिक्ष व वरुण आणि जल एकत्र राहतात तसे माणसांनी विद्या व विद्वानांबरोबर राहून नित्य सुखी व बलवान व्हावे. ॥ १४ ॥