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किमु॒ श्रेष्ठ॒: किं यवि॑ष्ठो न॒ आज॑ग॒न्किमी॑यते दू॒त्यं१॒॑ कद्यदू॑चि॒म। न नि॑न्दिम चम॒सं यो म॑हाकु॒लोऽग्ने॑ भ्रात॒र्द्रुण॒ इद्भू॒तिमू॑दिम ॥

English Transliteration

kim u śreṣṭhaḥ kiṁ yaviṣṭho na ājagan kim īyate dūtyaṁ kad yad ūcima | na nindima camasaṁ yo mahākulo gne bhrātar druṇa id bhūtim ūdima ||

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Pad Path

किम्। ऊँ॒ इति॑। श्रेष्ठः॑। किम्। यवि॑ष्ठः। नः॒। आ। अ॒ज॒ग॒न्। किम्। ई॒य॒ते॒। दू॒त्य॑म्। कत्। यत्। ऊ॒चि॒म। न। नि॒न्दि॒म॒। च॒म॒सम्। यः। म॒हा॒ऽकु॒लः। अ॒ग्ने॒। भ्रा॒तः॒। द्रुणः॑। इत्। भू॒तिम्। ऊ॒दि॒म॒ ॥ १.१६१.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:161» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:4» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब चौदह ऋचावाले एकसौ इकसठवें सूक्त का आरम्भ है। उसके आरम्भ से मेधावि अर्थात् धीरबुद्धि के कर्मों को कहते हैं ।

Word-Meaning: - हे (भ्रातः) बन्धु (अग्ने) विद्वान् ! (यः) जो (महाकुलः) बड़े कुलवाला (द्रुणः) शीघ्रगामी पुरुष (चमसम्) मेघ को प्राप्त होता है उसकी हम लोग (न) नहीं (निन्दिम) निन्दा करते (नः) हम लोगों को (किम्) क्या (श्रेष्ठः) श्रेष्ठ (किम्) क्या (उ) तो (यविष्ठः) अतीव ज्वान पुरुष (आजगन्) बार-बार प्राप्त होता है (यत्) जिसको हम लोग (ऊचिम्) कहें सो (किम्) क्या (दूत्यम्) दूतपन वा दूत के काम को (ईयते) प्राप्त होता है उसको प्राप्त होके (इत्) ही (कत्) कब (भूतिम्) ऐश्वर्य्य को (ऊदिम) कहें उपदेश करें ॥ १ ॥
Connotation: - जिज्ञासु जन विद्वानों को ऐसा पूछें कि हमको उत्तम विद्या कैसे प्राप्त हो और कौन इस विद्या विषय में श्रेष्ठ बलवान् दूत के समान पदार्थ है, किसको पा कर हम लोग सुखी होवें ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ मेधाविकर्म्माण्याह ।

Anvay:

हे भ्रातरग्ने यो महाकुलो द्रुणश्चमसमाप्नोति तं वयं न निन्दिम नोऽस्मान् किं श्रेष्ठः किमु यविष्ठ आऽजगन् यद्यं वयमूचिम स किं दूत्यमीयते ते प्राप्येत् कद्भूतिमूदिम ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (किम्) (उ) (श्रेष्ठः) (किम्) (यविष्ठः) अतिशयेन युवा (नः) अस्मान् (आ) (अजगन्) पुनःपुनः प्राप्नोति। अत्र यङि लङि बहुलं छन्दसीति शपो लुक्। (किम्) (ईयते) प्राप्नोति (दूत्यम्) दूतस्य भावं कर्म वा (कत्) कदा (यत्) यम् (ऊचिम) उच्याम (न) (निन्दिम) निन्देम। अत्र वा छन्दसीति लिटि द्विर्वचनाभावः। (चमसम्) मेघम् (यः) (महाकुलः) महत्कुलं यस्य (अग्ने) विद्वन् (भ्रातः) बन्धो (द्रुणः) यो द्रवति सः (इत्) एव (भूतिम्) ऐश्वर्यम् (ऊदिम) वदेम ॥ १ ॥
Connotation: - जिज्ञासवो विदुष एवं पृच्छेयुरस्मान् कथमुत्तमविद्या प्राप्नुयात् कश्चास्मिन् विषये श्रेयान् बलिष्ठो दूत इव पदार्थोऽस्ति कं प्राप्य वयं सुखिनः स्यामेति ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात मेधावीचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागील सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे. हे जाणले पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जिज्ञासू लोकांनी विद्वानांना हे विचारावे की आम्ही उत्तम विद्या कशी प्राप्त करावी? या विद्येमध्ये श्रेष्ठ बलवान दूताप्रमाणे पदार्थ कोणता आहे? काय प्राप्त करून आम्ही सुखी व्हावे? ॥ १ ॥