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ते सू॒नव॒: स्वप॑सः सु॒दंस॑सो म॒ही ज॑ज्ञुर्मा॒तरा॑ पू॒र्वचि॑त्तये। स्था॒तुश्च॑ स॒त्यं जग॑तश्च॒ धर्म॑णि पु॒त्रस्य॑ पाथः प॒दमद्व॑याविनः ॥

English Transliteration

te sūnavaḥ svapasaḥ sudaṁsaso mahī jajñur mātarā pūrvacittaye | sthātuś ca satyaṁ jagataś ca dharmaṇi putrasya pāthaḥ padam advayāvinaḥ ||

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Pad Path

ते। सू॒नवः॑। सु॒ऽअप॑सः। सु॒ऽदंस॑सः। म॒ही इति॑। ज॒ज्ञुः॒। मा॒तरा॑। पू॒र्वऽचि॑त्तये। स्था॒तुः। च॒। स॒त्यम्। जग॑तः। च॒। धर्म॑णि। पु॒त्रस्य॑। पाथः। प॒दम्। अद्व॑याविनः ॥ १.१५९.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:159» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:2» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (स्वपसः) सुन्दर कर्म और (सुदंससः) शोभन कर्मयुक्त व्यवहारवाले जन (पूर्वचित्तये) पूर्व पहिली जो चित्ति अर्थात् किन्हीं पदार्थों का इकट्ठा करना है उसके लिये (जज्ञुः) प्रसिद्ध होते हैं (ते) वे (महि) बड़ी (मातरा) मान करनेवाली माताओं को जानें। हे माता-पिताओ ! जो तुम (स्थातुः) स्थावर धर्मवाले (च) और (जगतः) जङ्गम जगत् के (च) भी (धर्मणि) साधर्म्य में (अद्वयाविनः) इकले (पुत्रस्य) पुत्र के (सत्यम्) सत्य (पदम्) प्राप्त होने योग्य पदार्थ की (पाथः) रक्षा करते हो उनकी (सूनवः) पुत्र जन निरन्तर सेवा करें ॥ ३ ॥
Connotation: - क्या भूमि और सूर्य सबके पालन के निमित्त नहीं हैं ? जो पिता-माता चराचर जगत् का विज्ञान पुत्रों के लिये ग्रहण कराते हैं, वे कृतकृत्य क्यों न हों ? ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

ये स्वपसः सुदंससः पूर्वचित्तये जज्ञुस्ते मही मातरा जानीयुः। हे पितरौ यौ युवां स्थातुश्च जगतश्च धर्मण्यद्वयाविनः पुत्रस्य सत्यं पदं पाथस्तौ सूनवः सततं सेवेरन् ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (ते) (सूनवः) (स्वपसः) सुष्ठु अपांसि कर्म्माणि येभ्यस्ते (सुदंससः) शोभनानि दंसांसि कर्माणि व्यवहारेषु येषां ते (मही) महत्यौ (जज्ञुः) जायन्ते (मातरा) मान्यकारिण्यौ (पूर्वचित्तये) पूर्वा चासौ चित्तिश्चयनं च तस्यै (स्थातुः) अचरस्य (च) (सत्यम्) नाशरहितम् (जगतः) गच्छतः (च) (धर्म्मणि) साधर्म्ये (पुत्रस्य) सन्तानस्य (पाथः) रक्षथः (पदम्) प्राप्तव्यम् (अद्वयाविनः) न विद्यते द्वितीयो यस्मिँस्तस्य ॥ ३ ॥
Connotation: - किं भूमिसूर्यौ सर्वेषां पालननिमित्ते न स्तः ? ये पितरश्चराचरस्य जगतो विज्ञानं पुत्रेभ्यो ग्राहयन्ति ते कृतकृत्या कुतो न स्युः ? ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - भूमी व सूर्य सर्वांचे पालन करण्याचे निमित्त नाहीत काय? जे माता-पिता चराचर जगाचे विज्ञान पुत्रांना उपलब्ध करून देतात ते कृतकृत्य का असू नयेतः ॥ ३ ॥