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यु॒वं ह॒ गर्भं॒ जग॑तीषु धत्थो यु॒वं विश्वे॑षु॒ भुव॑नेष्व॒न्तः। यु॒वम॒ग्निं च॑ वृषणाव॒पश्च॒ वन॒स्पतीँ॑रश्विना॒वैर॑येथाम् ॥

English Transliteration

yuvaṁ ha garbhaṁ jagatīṣu dhattho yuvaṁ viśveṣu bhuvaneṣv antaḥ | yuvam agniṁ ca vṛṣaṇāv apaś ca vanaspatīm̐r aśvināv airayethām ||

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Pad Path

यु॒वम्। ह॒। गर्भ॑म्। जग॑तीषु। ध॒त्थः॒। यु॒वम्। विश्वे॑षु। भुव॑नेषु। अ॒न्तरिति॑। यु॒वम्। अ॒ग्निम्। च॒। वृ॒ष॒णौ॒। अ॒पः। च॒। वन॒स्पती॑न्। अ॒श्वि॒नौ॒। ऐर॑येथाम् ॥ १.१५७.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:157» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:27» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (वृषणा) जल वर्षा करानेवाले (अश्विनौ) सूर्य और चन्द्रमा के समान अध्यापक और उपदेशक (युवम्) तुम दोनों (जगतीषु) विविध पृथिवी आदि सृष्टियों में (गर्भम्) गर्भ के समान विद्या के बोध को (धत्थः) धरते हो (युवं, ह) तुम्हीं (विश्वेषु) समस्त (भुवनेषु) लोक-लोकान्तरों के (अन्तः) बीच (अग्निम्) अग्नि को (च) भी (ऐरयेथाम्) चलाओ तथा (युवम्) तुम (अपः) जलों और (वनस्पतीन्) वनस्पति आदि वृक्षों को (च) डुलाओ ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्य जैसे यहाँ सूर्य और चन्द्रमा विराजमान हुए पृथिवी में वर्षा से गर्भ धारण करा कर समस्त पदार्थों को उत्पन्न कराते हैं, वैसे विद्यारूप गर्भ को धारण करा के समस्त सुखों को उत्पन्न करावें ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे वृषणावश्विनौ युवं जगतीषु गर्भं धत्थो युवं ह विश्वेषु भुवनेष्वन्तरग्निं चैरयेथाम्। युवमपो वनस्पतींश्चैरयेथाम् ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (युवम्) (ह) किल (गर्भम्) गर्भमिव विद्याबोधम् (जगतीषु) विविधासु पृथिव्यादिषु सृष्टिषु (धत्थः) धरथः (युवम्) युवाम् (विश्वेषु) सर्वेषु (भुवनेषु) निवासाऽधिकरणेषु (अन्तः) मध्ये (युवम्) (अग्निम्) (च) (वृषणौ) वर्षयितारौ (अपः) (च) (वनस्पतीन्) (अश्विनौ) सूर्य्याचन्द्रमसाविवाध्यापकोपदेशकौ (ऐरयेथाम्) चालयेथाम् ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्या यथेह सूर्याचन्द्रमसौ विराजमानौ पृथिव्यां वृष्ट्या गर्भं धारयित्वा सर्वान् पदार्थान् जनयतस्तथा विद्यागर्भं धारयित्वा सर्वाणि सुखानि जनयेयुः ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे येथे सूर्य व चंद्र विराजमान आहेत व वृष्टी करून पृथ्वीच्या गर्भातून सर्व पदार्थ उत्पन्न करतात तसे माणसांनी विद्यारूपी गर्भ धारण करून संपूर्ण सुख उत्पन्न करावे. ॥ ५ ॥