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द्वे इद॑स्य॒ क्रम॑णे स्व॒र्दृशो॑ऽभि॒ख्याय॒ मर्त्यो॑ भुरण्यति। तृ॒तीय॑मस्य॒ नकि॒रा द॑धर्षति॒ वय॑श्च॒न प॒तय॑न्तः पत॒त्रिण॑: ॥

English Transliteration

dve id asya kramaṇe svardṛśo bhikhyāya martyo bhuraṇyati | tṛtīyam asya nakir ā dadharṣati vayaś cana patayantaḥ patatriṇaḥ ||

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Pad Path

द्वे इति॑। इत्। अ॒स्य॒। क्रम॑णे॒ इति॑। स्वः॒ऽदृशः॑। अ॒भि॒ऽख्याय॑। मर्त्यः॑। भु॒र॒ण्य॒ति॒। तृ॒तीय॑म्। अ॒स्य॒। नकिः॑। आ। द॒ध॒र्ष॒ति॒। वयः॑। च॒न। प॒तय॑न्तः। प॒त॒त्रिणः॑ ॥ १.१५५.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:155» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:25» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (मर्त्यः) मनुष्य (स्वर्दृश) सुख देनेवाले (अस्य) इस ब्रह्मचारी के (द्वे, क्रमणे) दो अनुक्रम से चलनेवाले अर्थात् वर्त्ताव वर्त्तनेवाले शरीर-बल तथा आत्मबल को (अभिख्याय) सब ओर से प्रख्यात करने को (भुरण्यति) धारण करता है वह (पतयन्तः) ऊपर नीचे जाते हुए (पतत्रिणः) पङ्खोंवाले (वयः) पखेरू (चन) भी (इत्) जैसे किसी पदार्थ का विस्तार करें वैसे भी (अस्य) इस ब्रह्मचारी के (तृतीयम्) तीसरे विद्या जन्म का (नकिः, आ, दधर्षति) तिरस्कार नहीं करता है ॥ ५ ॥
Connotation: - जो माता-पिता अपने सन्तानों की ब्रह्मचर्य के अनुक्रम से विद्या जन्म को बढ़ाते हैं, वे अपने सन्तानों को दीर्घ आयुवाले, बलवान्, सुन्दरशीलयुक्त करके नित्य हर्षित होते हैं ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

यो मर्त्यः स्वर्दृशोऽस्य द्वे क्रमणे अभिख्याय भुरण्यति स पतयन्तः पतत्रिणो वयश्चनेदिवास्य तृतीयं नकिरादधर्षति ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (द्वे) शरीरात्मबले (इत्) इव (अस्य) ब्रह्मचारिणः (क्रमणे) अनुक्रमेण गमने (स्वर्दृशः) यः सुखं पश्यति तस्य (अभिख्याय) अभितः प्रख्यातुम् (मर्त्यः) मनुष्यः (भुरण्यति) धरति (तृतीयम्) त्रित्वसंख्याकं विद्याजन्म (अस्य) (नकिः) निषेधे (आ) समन्तात् (दधर्षति) धर्षितुमिच्छति (वयः) (चन) अपि (पतयन्तः) ऊर्ध्वमधो गच्छन्तः (पतत्रिणः) पक्षिणः ॥ ५ ॥
Connotation: - ये मातापितरः स्वापत्यानां ब्रह्मचर्याऽनुक्रमेण विद्याजन्म वर्द्धयन्ति ते स्वापत्यानि दीर्घायूंषि बलिष्ठानि सुशीलानि कृत्वा नित्यं मोदन्ते ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे माता-पिता आपल्या संतानाना ब्रह्मचर्य पालन करावयास लावतात व त्यांची विद्या वाढवितात ते आपल्या संतानांना दीर्घायू, बलवान, सुंदर शीलयुक्त करून नित्य आनंदित करतात. ॥ ५ ॥