तद॑स्य प्रि॒यम॒भि पाथो॑ अश्यां॒ नरो॒ यत्र॑ देव॒यवो॒ मद॑न्ति। उ॒रु॒क्र॒मस्य॒ स हि बन्धु॑रि॒त्था विष्णो॑: प॒दे प॑र॒मे मध्व॒ उत्स॑: ॥
tad asya priyam abhi pātho aśyāṁ naro yatra devayavo madanti | urukramasya sa hi bandhur itthā viṣṇoḥ pade parame madhva utsaḥ ||
तत्। अ॒स्य॒। प्रि॒यम्। अ॒भि। पाथः॑। अ॒श्या॒म्। नरः॑। यत्र॑। दे॒व॒यवः॑। मद॑न्ति। उ॒रु॒ऽक्र॒मस्य॑। सः। हि। बन्धुः॑। इ॒त्था। विष्णोः॑। प॒दे। प॒र॒मे। मध्वः॑। उत्सः॑ ॥ १.१५४.५
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अहं यत्र देवयवो नरो मदन्ति तदस्योरुक्रमस्य विष्णोः प्रियं पाथोभ्यश्यां यस्य परमे पदे मध्व उत्सइव तृप्तिकरो गुणो वर्त्तते स हि इत्था नो बन्धुरिवास्ति ॥ ५ ॥
MATA SAVITA JOSHI
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