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प्र तद्विष्णु॑: स्तवते वी॒र्ये॑ण मृ॒गो न भी॒मः कु॑च॒रो गि॑रि॒ष्ठाः। यस्यो॒रुषु॑ त्रि॒षु वि॒क्रम॑णेष्वधिक्षि॒यन्ति॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ॥

English Transliteration

pra tad viṣṇuḥ stavate vīryeṇa mṛgo na bhīmaḥ kucaro giriṣṭhāḥ | yasyoruṣu triṣu vikramaṇeṣv adhikṣiyanti bhuvanāni viśvā ||

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Pad Path

प्र। तत्। विष्णुः॑। स्त॒व॒ते॒। वी॒र्ये॑ण। मृ॒गः। न। भी॒मः। कु॒च॒रः। गि॒रि॒ऽस्थाः। यस्य॑। उ॒रुषु॑। त्रि॒षु। वि॒ऽक्रम॑णेषु। अ॒धि॒ऽक्षि॒यन्ति॑। भुव॑नानि। विश्वा॑ ॥ १.१५४.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:154» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:24» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यस्य) जिस जगदीश्वर के निर्माण किये हुए (उरुषु) विस्तीर्ण (त्रिषु) जन्म, नाम और स्थान इन तीन (विक्रमणेषु) विविध प्रकार के सृष्टि-क्रमों में (विश्वा) समस्त (भुवनानि) लोक-लोकान्तर (अधिक्षियन्ति) आधाररूप से निवास करते हैं (तत्) वह (विष्णुः) सर्वव्यापी परमात्मा अपने (वीर्येण) पराक्रम से (कुचरः) कुटिलगामी अर्थात् ऊँचे-नीचे नाना प्रकार विषम स्थलों में चलने और (गिरिष्ठाः) पर्वत कन्दराओ में स्थिर होनेवाले (मृगः) हरिण के (न) समान (भीमः) भयङ्कर है और समस्त लोक-लोकान्तरों को (प्रस्तवते) प्रशंसित करता है ॥ २ ॥
Connotation: - कोई भी पदार्थ ईश्वर और सृष्टि के नियम को उल्लङ्घ नहीं सकता है, जो धार्मिक जनों को मित्र के समान आनन्द देने, दुष्टों को सिंह के समान भय देने और न्यायादि गुणों का धारण करनेवाला परमात्मा है, वही सबका अधिष्ठाता और न्यायाधीश है, यह जानना चाहिये ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मनुष्या यस्य निर्मितेषूरुषु त्रिषु विक्रमणेषु विश्वा भुवनान्यधिक्षियन्ति तत् स विष्णुः स्ववीर्येण कुचरो गिरिष्ठा मृगो भीमो नेव विश्वाँल्लोकान् प्रस्तवते ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (प्र) (तत्) सः (विष्णुः) सर्वव्यापीश्वरः (स्तवते) स्तौति (वीर्येण) स्वपराक्रमेण (मृगः) (न) इव (भीमः) भयङ्करः (कुचरः) यः कुत्सितं चरति सः (गिरिष्ठाः) यो गिरौ तिष्ठति (यस्य) (उरुषु) विस्तीर्णेषु (त्रिषु) नामस्थानजन्मसु (विक्रमणेषु) विविधेषु सृष्टिक्रमेषु (अधिक्षियन्ति) आधाररूपेण निवसन्ति (भुवनानि) भवन्ति भूतानि येषु तानि लोकजातानि (विश्वा) सर्वाणि ॥ २ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। नहि कश्चिदपि पदार्थ ईश्वरसृष्टिनियमक्रममुल्लङ्घितुं शक्नोति यो धार्मिकाणां मित्रइवाह्लादप्रदो दुष्टानां सिंह इव भयप्रदो न्यायादिगुणधर्त्ता परमात्माऽस्ति स एव सर्वोषामधिष्ठाता न्यायाधीशोऽस्तीति वेदितव्यम् ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - कोणताही पदार्थ ईश्वर व सृष्टीच्या नियमाचे उल्लंघन करू शकत नाही, जो धार्मिक लोकांना मित्राप्रमाणे आनंद देणारा, दुष्टांना सिंहाप्रमाणे भयभीत करविणारा न्याय इत्यादी गुणांना धारण करणारा परमेश्वर आहे, तोच सर्वांचा अधिष्ठाता, न्यायाधीश आहे हे जाणले पाहिजे. ॥ २ ॥