Go To Mantra

आ वां॑ मित्रावरुणा ह॒व्यजु॑ष्टिं॒ नम॑सा देवा॒वव॑सा ववृत्याम्। अ॒स्माकं॒ ब्रह्म॒ पृत॑नासु सह्या अ॒स्माकं॑ वृ॒ष्टिर्दि॒व्या सु॑पा॒रा ॥

English Transliteration

ā vām mitrāvaruṇā havyajuṣṭiṁ namasā devāv avasā vavṛtyām | asmākam brahma pṛtanāsu sahyā asmākaṁ vṛṣṭir divyā supārā ||

Mantra Audio
Pad Path

आ। वा॒म्। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। ह॒व्यऽजु॑ष्टिम्। नम॑सा। देवौ॑। अव॑सा। व॒वृ॒त्या॒म्। अ॒स्माक॑म्। ब्रह्म॑। पृत॑नासु। स॒ह्याः॒। अ॒स्माक॑म्। वृ॒ष्टिः। दि॒व्या। सु॒ऽपा॒रा ॥ १.१५२.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:152» Mantra:7 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:22» Mantra:7 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:7


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ।

Word-Meaning: - हे (देवौ) दिव्य स्वभाववाले (मित्रावरुणा) मित्र और उत्तम जन ! जैसे मैं (वाम्) तुम दोनों की (नमसा) अन्न से (हव्यजुष्टिम्) ग्रहण करने योग्य सेवा को (आ, ववृत्याम्) अच्छे प्रकार वर्त्तूं वैसे तुम दोनों (अवसा) रक्षा आदि काम से (अस्माकम्) हमारे (पृतनासु) मनुष्यों में (ब्रह्म) धन की वृद्धि कराइये। हे विद्वान् ! जो (अस्माकम्) हमारी (दिव्या) शुद्ध (सुपारा) जिससे कि सुख के साथ सब कामों की परिपूर्णता हो ऐसी (वृष्टिः) दुष्टों की शक्ति बाँधनेवाली शक्ति है, उसको (सह्याः) सहो ॥ ७ ॥
Connotation: - जैसे विद्वान् जन अति प्रीति से हमारे लिये विद्याओं को देवें वैसे हम लोग इनको अत्यन्त श्रद्धा से सेवें, जिससे हमारी शुद्ध प्रशंसा सर्वत्र विदित हो ॥ ७ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे देवौ मित्रावरुणा यथाहं वां नमसा हव्यजुष्टिमाववृत्यां तथा युवामवसाऽस्माकं पृतनासु ब्रह्म वर्द्धयेतम्। हे विद्वन् याऽस्माकं दिव्या सुपारा वृष्टिरस्ति तां त्वं सह्याः ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (आ) (वाम्) युवाभ्याम् (मित्रावरुणा) सुहृद्वरौ (हव्यजुष्टिम्) आदातव्यसेवाम् (नमसा) अन्नेन (देवौ) दिव्यस्वभावौ (अवसा) रक्षणाद्येन कर्मणा (ववृत्याम्) वर्त्तयेयम्। अत्र बहुलं छन्दसीति शपः श्लुः। (अस्माकम्) (ब्रह्म) धनम् (पृतनासु) मनुष्येषु (सह्याः) सहनं कुर्य्याः (अस्माकम्) (वृष्टिः) दुष्टानां शक्तिबन्धिका शक्तिः (दिव्या) शुद्धा (सुपारा) सुखेन पारः पूतिर्यस्याः सा ॥ ७ ॥
Connotation: - यथा विद्वांसोऽतिप्रीत्याऽस्मभ्यं विद्याः प्रदद्युस्तथा वयमेतानतिश्रद्धया सेवेमहि यतोऽस्माकं शुद्धा प्रशंसा सर्वत्र विदिता स्यादिति ॥ ७ ॥अत्राध्यापकोपदेशकशिष्यक्रमवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्बोध्या ॥ इति द्विपञ्चाशदुत्तरं शततमं सूक्तं द्वाविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जसे विद्वान लोक अत्यंत प्रेमाने आम्हाला विद्या देतात तशी आम्ही ती श्रद्धेने स्वीकारावी, ज्यामुळे आमची प्रशंसा व्हावी. ॥ ७ ॥