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प्र॒यन्त॒मित्परि॑ जा॒रं क॒नीनां॒ पश्या॑मसि॒ नोप॑नि॒पद्य॑मानम्। अन॑वपृग्णा॒ वित॑ता॒ वसा॑नं प्रि॒यं मि॒त्रस्य॒ वरु॑णस्य॒ धाम॑ ॥

English Transliteration

prayantam it pari jāraṁ kanīnām paśyāmasi nopanipadyamānam | anavapṛgṇā vitatā vasānam priyam mitrasya varuṇasya dhāma ||

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Pad Path

प्र॒ऽयन्त॑म्। इत्। परि॑। जा॒रम्। क॒नीना॑म्। पश्या॑मसि। न। उ॒प॒ऽनि॒पद्य॑मानम्। अन॑वऽपृग्णा। विऽत॑ता। वसा॑नम्। प्रि॒यम्। मि॒त्रस्य॑। वरु॑णस्य। धाम॑ ॥ १.१५२.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:152» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:22» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (कनीनाम्) कामना करती हुई प्रजाओं की (जारम्) अवस्था हरनेवाले (प्रयन्तम्) अच्छे यत्न करते (उपनिपद्यमानम्) समीप प्राप्त होते (अनवपृग्णा) सम्बन्धरहित अर्थात् अलग के पदार्थ जो (वितता) विथरे हैं, उनको (वसानम्) आच्छादन करते अर्थात् अपने प्रकाश से प्रकाशित करते हुए सूर्य के समान (मित्रस्य) मित्र वा (वरुणस्य) श्रेष्ठ विद्वान् के (इत्) ही (प्रियम्) प्रिय (धाम) सुखसाधक घर को (परि, पश्यामसि) देखते हैं इससे विरुद्ध (न) न हों वैसे तुम भी इसको प्राप्त होओ ॥ ४ ॥
Connotation: - मनुष्य लोग जैसे रात्रियों के निहन्ता अपने प्रकाश का विस्तार करते हुए सूर्य को देख कर कार्य्यों को सिद्ध करते हैं, वैसे अविद्यान्धकार का नाश और विद्या का प्रकाश करनेवाले आप्त अध्यापक और उपदेशक के सङ्ग को पाकर क्लेशों को नष्ट करें ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मनुष्या यथा वयं कनीनां जारं प्रयन्तमुपनिपद्यमानमनवपृग्णा वितता वसानं सूर्यमिव मित्रस्य वरुणस्येत्प्रियं धाम परि पश्यामसि। अस्माद्विरुद्धा न भवेम तथा यूयमप्येतत् प्राप्नुत ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (प्रयन्तम्) प्रयत्नं कुर्वन्तम् (इत्) एव (परि) (जारम्) वयोहानिकारकम् (कनीनाम्) कामयमानानाम् (पश्यामसि) (न) (उपनिपद्यमानम्) समीपे प्राप्नुवन्तम् (अनवपृग्णा) संपर्करहितानि (वितता) विस्तृतानि तेजांसि (वसानम्) आच्छादयन्तम् (प्रियम्) (मित्रस्य) सुहृदः (वरुणस्य) श्रेष्ठस्य (धाम) सुखधारणसाधकं गृहम् ॥ ४ ॥
Connotation: - मनुष्या यथा रात्रीणां निहन्तारं स्वप्रकाशविस्तारकसूर्यं दृष्ट्वा कार्य्याणि साध्नुवन्ति तथाऽविद्यान्धकारनाशकविद्याप्रकाशक-माप्ताऽध्यापकोपदेशकसङ्गं प्राप्य क्लेशान् हन्युः ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - रात्रीचा नाश करून प्रकाश प्रसृत करणाऱ्या सूर्याला पाहून माणसे कार्य सिद्ध करतात तसे अविद्या अंधकाराचा नाश व विद्येचा प्रकाश करणाऱ्या आप्त, अध्यापक व उपदेशकाची संगती करून क्लेश नाहीसे करावेत. ॥ ४ ॥