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ए॒तच्च॒न त्वो॒ वि चि॑केतदेषां स॒त्यो मन्त्र॑: कविश॒स्त ऋघा॑वान्। त्रि॒रश्रिं॑ हन्ति॒ चतु॑रश्रिरु॒ग्रो दे॑व॒निदो॒ ह प्र॑थ॒मा अ॑जूर्यन् ॥

English Transliteration

etac cana tvo vi ciketad eṣāṁ satyo mantraḥ kaviśasta ṛghāvān | triraśriṁ hanti caturaśrir ugro devanido ha prathamā ajūryan ||

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Pad Path

ए॒तत्। च॒न। त्वः॒। वि। चि॒के॒त॒त्। ए॒षा॒म्। स॒त्यः। मन्त्रः॑। क॒वि॒ऽश॒स्तः। ऋघा॑वान्। त्रिः॒ऽअश्रि॑म्। ह॒न्ति॒। चतुः॑ऽअश्रिः। उ॒ग्रः। दे॒व॒ऽनिदः॑। ह॒। प्र॒थ॒माः। अ॒जू॒र्य॒न् ॥ १.१५२.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:152» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:22» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ।

Word-Meaning: - (त्वः) कोई ही (एषाम्) इन विद्वानों में ऐसा है, जो कि (ऋघावान्) बहुत स्तुति और सत्य असत्य की विवेचना करनेवाली मतियों से युक्त (कविशस्तः) मेधावी कवियों ने प्रशंसित किया (सत्यः) अव्यभिचारी (मन्त्रः) विचार है (एतत्) इसको (विचिकेतत्) विशेषता से जानता है और जो (चतुरश्रिः) चारों वेदों को प्राप्त होता वह (उग्रः) तीव्र स्वभाववाला (देवनिदः) जो विद्वानों की निन्दा करते हैं उनको (हन्ति) मारता और (त्रिरश्रिम्) जो तीनों अर्थात् वाणी, मन और शरीर से प्राप्त किया जाता है ऐसे उत्तम पदार्थ को जानता है, उक्त वे सब (प्रथमाः) आदिम अर्थात् अग्रगामी अगुआ (ह) ही हैं और वे प्रथम (चन) ही (अजूर्यन्) बुड्ढे होते हैं ॥ २ ॥
Connotation: - जो मनुष्य विद्वानों की निन्दा को छोड़ निन्दकों को निवार के सत्य ज्ञान को प्राप्त हो सत्य विद्याओं को पढ़ाते हुए और सत्य का उपदेश करते हुए विस्तृत सुख को प्राप्त होते हैं, वे धन्य हैं ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

त्वः कश्चिदेवैषां विदुषां य ऋघावान् कविशस्तः सत्यो मन्त्रोऽस्ति एतत् विचिकेतत् यश्चतुरश्रिरुग्रो देवनिदो हन्ति त्रिरश्रिं चिकेतत् ते प्रथमा ह खलु प्रथमाश्चनाजूर्यन् ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (एतत्) (चन) अपि (त्वः) कश्चित् (वि) (चिकेतत्) विजानाति (एषाम्) (सत्यः) अव्यभिचारी (मन्त्रः) विचारः (कविशस्तः) कविभिः मेधाविभिः शस्तः प्रशंसितः (ऋघावान्) ऋघाः बह्व्यः स्तुतयो सत्यासत्यविवेचिका मतयो विद्यन्ते यस्मिन् सः (त्रिरश्रिम्) त्रिभिर्वाङ्मनःशरीरैर्योऽश्यते प्राप्यते तम् (हन्ति) (चतुरश्रिः) चतुरो वेदानश्नुते सः (उग्रः) तीव्रस्वभावः (देवनिदः) ये देवान्निन्दन्ति तान् (ह) खलु (प्रथमाः) आदिमाः (अजूर्यन्) वृद्धा जायन्ते ॥ २ ॥
Connotation: - ये मनुष्याः विद्वन्निन्दां विहाय निन्दकान् निवार्य सत्यं ज्ञानं प्राप्य सत्या विद्या अध्यापयन्तः सत्यमुपदिशन्तश्च पृथुसुखा जायन्ते ते धन्याः सन्ति ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे विद्वानांची निंदा सोडून निंदकाचे निवारण करतात, सत्य ज्ञान प्राप्त करतात व सत्य विद्या शिकवून सत्याचा उपदेश करून सुख प्राप्त करतात ती धन्य होत. ॥ २ ॥