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रे॒वद्वयो॑ दधाथे रे॒वदा॑शाथे॒ नरा॑ मा॒याभि॑रि॒तऊ॑ति॒ माहि॑नम्। न वां॒ द्यावोऽह॑भि॒र्नोत सिन्ध॑वो॒ न दे॑व॒त्वं प॒णयो॒ नान॑शुर्म॒घम् ॥

English Transliteration

revad vayo dadhāthe revad āśāthe narā māyābhir itaūti māhinam | na vāṁ dyāvo habhir nota sindhavo na devatvam paṇayo nānaśur magham ||

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Pad Path

रे॒वत्। वयः॑। द॒धा॒थे॒। रे॒वत्। आ॒शा॒थे॒ इति॑। नरा॑। मा॒याभिः॑। इ॒तःऽऊ॑ति। माहि॑नम्। न। वा॒म्। द्यावः॑। अह॑ऽभिः। न। उ॒त। सिन्ध॑वः। न। दे॒व॒ऽत्वम्। प॒णयः॑। न। आ॒न॒शुः॒। म॒घम् ॥ १.१५१.९

Rigveda » Mandal:1» Sukta:151» Mantra:9 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:21» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ।

Word-Meaning: - हे (नरा) अग्रगामी जनो ! जो तुम (मायाभिः) मानने योग्य बुद्धियों से (माहिनम्) अत्यन्त पूज्य और बड़ा भी (इतऊति) इधर से रक्षा जिससे उस (वयः) अति रम्य मनोहर (रेवत्) प्रशंसित धनयुक्त ऐश्वर्य को (दधाथे) धारण करते हो और (रेवत्) बहुत ऐश्वर्ययुक्त व्यवहार को (आशाथे) प्राप्त होते हो उन (वाम्) आपकी (देवत्वम्) विद्वत्ता को (द्यावः) प्रकाश (न) नहीं (अहभिः) दिनों के साथ दिन अर्थात् एकतार समय (न) नहीं (उत) और (सिन्धवः) बड़ी-बड़ी नदी-नद (न) नहीं (आनशुः) व्याप्त होते अर्थात् अपने-अपने गुणों से तिरस्कार नहीं कर सकते, जीत नहीं सकते, अधिक नहीं होवे तथा (पणयः) व्यवहार करते हुए जन (मघम्) तुम्हारे महत् ऐश्वर्य को (न) नहीं व्याप्त होते, जीत सकते ॥ ९ ॥
Connotation: - जिस जिस को विद्वान् प्राप्त करते हैं, उस उस को इतर सामान्य जन प्राप्त नहीं होते, विद्वानों के उपमा विद्वान् ही होते हैं और नहीं होते ॥ ९ ॥इस सूक्त में मित्र-वरुण के लक्षण अर्थात् मित्र-वरुण शब्द से लक्षित अध्यापक और उपदेशक आदि का वर्णन किया, इससे इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥यह एकसौ एकावनवाँ सूक्त और इक्कीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे नरा यौ युवां मायाभिर्माहिनमितऊति वयो रेवद्दधाथे रेवदाशाथे च तयोर्वां देवत्वं द्यावो नाहभिरहानि नोत सिन्धवो नानशुः पणयो मघं च नानशुः ॥ ९ ॥

Word-Meaning: - (रेवत्) प्रशस्तधनवत् (वयः) कमनीयम् (दधाथे) धरथः (रेवत्) बह्वैश्वर्ययुक्तम् (आशाथे) (नरा) नायकौ (मायाभिः) प्रज्ञाभिः (इतऊति) इतः ऊतिः रक्षा यस्मात् तत् (माहिनम्) अत्यन्तं पूज्यं महच्च। माहिन इति महन्ना०। निघं० ३। ३। (न) निषेधे (वाम्) युवयोः (द्यावः) प्रकाशाः (अहभिः) दिनैः (न) (उत) (सिन्धवः) नद्यः (न) (देवत्वम्) विद्वत्त्वम् (पणयः) व्यवहरमाणाः (न) (आनशुः) व्याप्नुवन्ति (मघम्) महदैश्वर्यम् ॥ ९ ॥
Connotation: - यद्यद्विद्वांसः प्राप्नुवन्ति तत्तदितरे न यान्ति विदुषामुपमा विद्वांस एव भवन्ति नापरे इति ॥ ९ ॥अस्मिन् सूक्ते मित्रावरुणलक्षणोक्तत्वादेतत्सूक्तार्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेदितव्या ॥इति एकपञ्चाशदुत्तरं शततमं सूक्तमेकविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी गोष्ट विद्वान प्राप्त करतात ती सामान्य लोक प्राप्त करीत नाहीत विद्वानांची उपमा विद्वानच असतात इतर नव्हे. ॥ ९ ॥