Go To Mantra

स च॒न्द्रो वि॑प्र॒ मर्त्यो॑ म॒हो व्राध॑न्तमो दि॒वि। प्रप्रेत्ते॑ अग्ने व॒नुष॑: स्याम ॥

English Transliteration

sa candro vipra martyo maho vrādhantamo divi | pra-pret te agne vanuṣaḥ syāma ||

Mantra Audio
Pad Path

सः। च॒न्द्रः। वि॒प्र॒। मर्त्यः॑। म॒हः। व्राध॑न्ऽतमः। दि॒वि। प्रऽप्र॑। इत्। ते॒। अ॒ग्ने॒। व॒नुषः॑। स्याम ॥ १.१५०.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:150» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:19» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:3


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) विद्वान् ! जैसे हम लोग (वनुषः) अलग सबको बाँटनेवाले (ते) आपके उपकार करनेवाले (प्रप्र, इत्, स्याम) उत्तम ही प्रकार से होवें। वा हे (विप्र) धीर बुद्धिवाले जन जैसे (सः) वह (मर्त्यः) मनुष्य (व्राधन्तमः) अतीव उन्नति को प्राप्त जैसे (महः) बड़ा (चन्द्रः) चन्द्रमा (दिवि) आकाश में वर्त्तमान है, वैसे तू भी अपना वर्त्ताव रख ॥ ३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे पृथिव्यादि पदार्थों को जाने हुए विद्वान् जन विद्याप्रकाश में प्रवृत्त होते हैं, वैसे और जनों को भी वर्त्ताव रखना चाहिये ॥ ३ ॥इस सूक्त में विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥ यह एक सौ पचासवाँ सूक्त और उन्नीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे अग्ने विद्वन् यथा वयं वनुषस्ते तवोपकारकाः प्रप्रेत् स्याम। हे विप्र यथा स मर्त्यो व्राधन्तमो महश्चन्द्रो दिवीव वर्त्तते तथा त्वं वर्त्तस्व ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (सः) (चन्द्रः) आह्लादकारकः (विप्र) मेधाविन् (मर्त्यः) मनुष्यः (महः) महान् (व्राधन्तमः) अतिशयेन वर्द्धमानः (दिवि) (प्रप्र) (इत्) एव (ते) तव (अग्ने) विद्वन् (वनुषः) संविभाजकस्य (स्याम) भवेम ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा पृथिव्यादिपदार्थज्ञा विद्वांसो विद्याप्रकाशे प्रवर्त्तन्ते तथेतरैरपि वर्त्तितव्यम् ॥ ३ ॥अस्मिन् सूक्ते विद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥इति पञ्चाशदुत्तरं शततमं सूक्तमेकोनविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे पृथ्वी इत्यादी पदार्थांना जाणणारे विद्वान लोक विद्या प्रकाशित करण्यास प्रवृत्त होतात, तसे इतरांनीही वागावे. ॥ ३ ॥