अश्वि॑ना॒ पिब॑तं॒ मधु॒ दीद्य॑ग्नी शुचिव्रता। ऋ॒तुना॑ यज्ञवाहसा॥
aśvinā pibatam madhu dīdyagnī śucivratā | ṛtunā yajñavāhasā ||
अश्वि॑ना। पिब॑तम्। मधु॑। दीद्य॑ग्नी॒ इति॒ दीदि॑ऽअग्नी। शु॒चि॒ऽव्र॒ता॒। ऋ॒तुना॑। य॒ज्ञ॒ऽवा॒ह॒सा॒॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर ऋतुओं के साथ में सूर्य्य और चन्द्रमा के गुणों का उपदेश अगले मन्त्र में किया है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः सूर्य्याचन्द्रमसोर्ऋतुयोगे गुणा उपदिश्यन्ते।
हे विद्वांसो ! यूयं यौ शुचिव्रता यज्ञवाहसा दीद्यग्नी अश्विनौ मधु पिबतं पिबत ऋतुना ऋतुभिः सह रसान् गमयतस्तौ विजानीत॥११॥
MATA SAVITA JOSHI
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