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अ॒भि द्वि॒जन्मा॒ त्री रो॑च॒नानि॒ विश्वा॒ रजां॑सि शुशुचा॒नो अ॑स्थात्। होता॒ यजि॑ष्ठो अ॒पां स॒धस्थे ॥

English Transliteration

abhi dvijanmā trī rocanāni viśvā rajāṁsi śuśucāno asthāt | hotā yajiṣṭho apāṁ sadhasthe ||

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Pad Path

अ॒भि। द्वि॒ऽजन्मा॑। त्री। रो॒च॒नानि॑। विश्वा॑। रजां॑सि। शु॒शु॒चा॒नः। अ॒स्था॒त्। होता॑। यजि॑ष्ठः। अ॒पाम्। स॒धऽस्थे॑ ॥ १.१४९.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:149» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:18» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! जैसे (द्विजन्मा) दो अर्थात् आकाश और वायु से प्रसिद्ध जिसका जन्म ऐसा (होता) आकर्षण शक्ति से पदार्थों को ग्रहण करने और (यजिष्ठः) अतिशय करके सङ्गत होनेवाला अग्नि (अपाम्) जलों के (सधस्थे) साथ के स्थान में (त्री) तीन (रोचनानि) अर्थात् सूर्य, बिजुली और भूमि के प्रकाशों को और (विश्वा) समस्त (रजांसि) लोकों को (शुशुचानः) प्रकाशित करता हुआ (अभ्यस्थात्) सब ओर से स्थित हो रहा है, वैसे तुम होओ ॥ ४ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो विद्या और धर्मसंयुक्त व्यवहार में विद्वानों के सङ्ग से प्रकाशित हुए स्थान के निमित्त अनुष्ठान करते हैं, वे समस्त अच्छे गुण, कर्म और स्वभावों के ग्रहण करने के योग्य होते हैं ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे विद्वन् तथा द्विजन्मा होता यजिष्ठोऽग्निरपां सधस्थे त्री रोचनानि विश्वा रजांसि शुशुचानः सन्नभ्यस्थात्तथा त्वं भव ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (अभि) आभिमुख्ये (द्विजन्मा) द्वाभ्यामाकाशवायुभ्यां जन्म प्रादुर्भावो यस्य (त्री) त्रीणि (रोचनानि) सूर्यविद्युद्भूमिसम्बन्धीनि तेजांसि (विश्वा) सर्वाणि (रजांसि) लोकान् (शुशुचानः) प्रकाशयन् (अस्थात्) तिष्ठति (होता) आकर्षणेनादाता (यजिष्ठः) अतिशयेन यष्टा सङ्गन्ता (अपाम्) जलानाम् (सधस्थे) सहस्थाने ॥ ४ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये विद्याधर्म्ये विद्वत्सङ्गप्रकाशिते स्थानेऽनुतिष्ठन्ति ते सर्वान् शुभगुणकर्मस्वभावानादातुमर्हन्ति ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे विद्वानांच्या संगतीने विद्या व धर्मयुक्त व्यवहारात अग्नी व जलयुक्त स्थानी अनुष्ठान करतात ते संपूर्ण चांगले गुणकर्मस्वभाव ग्रहण करतात.