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न यं रि॒पवो॒ न रि॑ष॒ण्यवो॒ गर्भे॒ सन्तं॑ रेष॒णा रे॒षय॑न्ति। अ॒न्धा अ॑प॒श्या न द॑भन्नभि॒ख्या नित्या॑स ईं प्रे॒तारो॑ अरक्षन् ॥

English Transliteration

na yaṁ ripavo na riṣaṇyavo garbhe santaṁ reṣaṇā reṣayanti | andhā apaśyā na dabhann abhikhyā nityāsa īm pretāro arakṣan ||

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Pad Path

न। यम्। रि॒पवः॑। न। रि॒ष॒ण्यवः॑। गर्भे॑। सन्त॑म्। रे॒ष॒णाः। रे॒षय॑न्ति। अ॒न्धाः। अ॒प॒श्याः। न। द॒भ॒न्। अ॒भि॒ऽख्या। नित्या॑सः। ई॒म्। प्रे॒तारः॑। अ॒र॒क्ष॒न् ॥ १.१४८.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:148» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:17» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (यम्) जिसको (रिपवः) शत्रुजन (न) नहीं (रेषयन्ति) नष्ट करा सकते वा (गर्भे, सन्तम्) मध्य में वर्त्तमान जिसको (रेषणाः) हिंसक (रिषण्यवः) अपने को नष्ट होने की इच्छा करनेवाले (न) नष्ट नहीं करा सकते वा (नित्यासः) नित्य अविनाशी (अभिख्या) सब ओर से ख्याति करने और (अपश्याः) न देखनेवालों के (न) समान (अन्धाः) ज्ञानदृष्टिरहित न (दभन्) नष्ट कर सकें जो (प्रेतारः) प्रीति करनेवाले (ईम्) सब ओर से (अरक्षन्) रक्षा करें उस अग्नि को और उनको सब सत्कारयुक्त करें ॥ ५ ॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जिसको रिपु जन नष्ट नहीं कर सकते हैं, जो गर्भ में भी नष्ट नहीं होता है, वह आत्मा जानने योग्य है ॥ ५ ॥इस सूक्त में विद्वान् और अग्नि आदि पदार्थों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानने योग्य है ॥यह एकसौ अड़तालीसवाँ सूक्त और सत्रहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

यं रिपवो न रेषयन्ति यं गर्भे सन्तं रेषणा रिषण्यवो न रेषयन्ति नित्यासोऽभिख्याऽपश्यानेवान्धा न दभन् ये प्रेतार ईम् रक्षन् तं तान् सर्वे सत्कुर्वन्तु ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (न) (यम्) (रिपवः) शत्रवः (न) (रिषण्यवः) आत्मनो रेषणामिच्छवः (गर्भे) मध्ये (सन्तम्) वर्त्तमानम् (रेषणाः) हिंसकाः (रेषयन्ति) हिंसयन्ति (अन्धाः) ज्ञानदृष्टिरहिताः (अपश्याः) ये न पश्यन्ति ते (न) इव (दभन्) दभ्नुयुः (अभिख्या) ये अभितः ख्यान्ति ते (नित्यासः) अविनाशिनः (ईम्) सर्वतः (प्रेतारः) प्रीतिकर्तारः (अरक्षन्) रक्षेयुः ॥ ५ ॥
Connotation: - हे मनुष्या यं रिपवो हन्तुं न शक्नुवन्ति यो गर्भेऽपि न क्षीयते स आत्मा वेदितव्यः ॥ ५ ॥अस्मिन् सूक्ते विद्वदग्न्यादिगुणवर्णनादेतत्सूक्तार्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह संगतिर्बोध्या ॥इत्यष्टचत्वारिंशदुत्तरं शततमं सूक्तं सप्तदशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! ज्याला शत्रू नष्ट करू शकत नाहीत. जो गर्भातही नष्ट होत नाही, तो आत्मा जाणण्यायोग्य आहे. ॥ ५ ॥