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नित्ये॑ चि॒न्नु यं सद॑ने जगृ॒भ्रे प्रश॑स्तिभिर्दधि॒रे य॒ज्ञिया॑सः। प्र सू न॑यन्त गृ॒भय॑न्त इ॒ष्टावश्वा॑सो॒ न र॒थ्यो॑ रारहा॒णाः ॥

English Transliteration

nitye cin nu yaṁ sadane jagṛbhre praśastibhir dadhire yajñiyāsaḥ | pra sū nayanta gṛbhayanta iṣṭāv aśvāso na rathyo rārahāṇāḥ ||

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Pad Path

नित्ये॑। चि॒त्। नु। यम्। सद॑ने। ज॒गृ॒भ्रे। प्रश॑स्तिऽभिः। द॒धि॒रे। य॒ज्ञिया॑सः। प्र। सु। न॒य॒न्त॒। गृ॒भय॑न्तः। इ॒ष्टौ। अश्वा॑सः। न। र॒थ्यः॑। र॒र॒हा॒णाः ॥ १.१४८.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:148» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:17» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (यज्ञियासः) शिल्प यज्ञ के योग्य सज्जन (प्रशस्तिभिः) प्रशंसित क्रियाओं से (नित्ये) नित्य नाशरहित (सदने) बैठें जिस आकाश में और (इष्टौ) प्राप्त होने योग्य क्रिया में (यम्) जिस अग्नि का (जगृभ्रे) ग्रहण करें (चित्) और (नु) शीघ्र (दधिरे) धरें उसके आश्रय से (रारहाणाः) जाते हुए जो कि (रथ्यः) रथों में उत्तम प्रशंसावाले (अश्वासः) अच्छे शिक्षित घोड़े हैं उनके (न) समान और (गृभयन्तः) पदार्थों को ग्रहण करनेवालों के समान आचरण करते हुए रथों को (सु, प्र, नयन्त) उत्तम प्रीति से प्राप्त होवें ॥ ३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो नित्य आकाश में स्थित वायु और अग्नि आदि पदार्थों को उत्तम क्रियाओं से कार्यों में युक्त करते हैं, वे विमान आदि यानों को बना सकते हैं ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

ये यज्ञियासो जनाः प्रशस्तिभिर्नित्य इष्टौ सदने यं जगृभ्रे चिन्नु दधिरे तस्यालम्बेन रारहाणा रथ्योऽश्वासो न गृभयन्तः सन्तो यानानि सुप्रणयन्त ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (नित्ये) नाशरहिते (चित्) अपि (नु) सद्यः (यम्) पावकम् (सदने) सीदन्ति यस्मिन्नाकाशे तस्मिन् (जगृभ्रे) गृह्णीयुः (प्रशस्तिभिः) प्रशंसिताभिः क्रियाभिः (दधिरे) धरेयुः (यज्ञियासः) ये शिल्पाख्यं यज्ञमर्हन्ति ते (प्र) (सु) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (नयन्त) प्राप्नुयुः (गृभयन्तः) ग्रहीता इवाचरन्तः (इष्टौ) गन्तव्यायाम् (अश्वासः) सुशिक्षितास्तुङ्गाः (न) इव (रथ्यः) रथेषु साधवः (रारहाणाः) गच्छन्तः। अत्र तुजादीनामित्यभ्यासदीर्घः ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। ये नित्य आकाशे स्थितान् वाय्वग्न्यादिपदार्थानुत्तमाभिः क्रियाभिः कार्येषु योजयन्ति ते विमानादीनि यानानि रचयितुं शक्नुवन्ति ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे नित्य आकाशात स्थित असलेल्या वायू व अग्नी इत्यादी पदार्थांना उत्तम क्रियेत युक्त करतात ते विमान इत्यादी यानांना बनवू शकतात. ॥ ३ ॥