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धीरा॑सः प॒दं क॒वयो॑ नयन्ति॒ नाना॑ हृ॒दा रक्ष॑माणा अजु॒र्यम्। सिषा॑सन्त॒: पर्य॑पश्यन्त॒ सिन्धु॑मा॒विरे॑भ्यो अभव॒त्सूर्यो॒ नॄन् ॥

English Transliteration

dhīrāsaḥ padaṁ kavayo nayanti nānā hṛdā rakṣamāṇā ajuryam | siṣāsantaḥ pary apaśyanta sindhum āvir ebhyo abhavat sūryo nṝn ||

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Pad Path

धीरा॑सः। प॒दम्। क॒वयः॑। न॒य॒न्ति॒। नाना॑। हृ॒दा। रक्ष॑माणाः। अ॒जु॒र्यम्। सिसा॑सन्तः। परि॑। अ॒प॒श्य॒न्त॒। सिन्धु॑म्। आ॒विः। ए॒भ्यः॒। अ॒भ॒व॒त्। सूर्यः॑। नॄन् ॥ १.१४६.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:146» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:15» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (धीरासः) ध्यानवान् (कवयः) विविध प्रकार के पदार्थों में आक्रमण करनेवाली बुद्धियुक्त विद्वान् (हृदा) हृदय से (नाना) अनेक (नॄन्) मुखियों की (रक्षमाणाः) रक्षा करते और (सिषासन्तः) अच्छे प्रकार विभाग करने की इच्छा करते हुए (सूर्यः) सूर्य के समान अर्थात् जैसे सूर्यमण्डल (सिन्धुम्) नदी के जल को स्वीकार करता वैसे (अजुर्यम्) हानिरहित (पदम्) प्राप्त करने योग्य पद को (नयन्ति) प्राप्त होते हैं वे परमात्मा को (परि, अपश्यन्त) सब ओर से देखते अर्थात् सब पदार्थों में विचारते हैं जो (एभ्यः) इनसे विद्या और उत्तम शिक्षा को पाके (आविः) प्रकट (अभवत्) होता है वह भी उस पद को प्राप्त होता है ॥ ४ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो सबको आत्मा के समान सुख-दुःख की व्यवस्था में जान न्याय का ही आश्रय करते हैं वे अव्यय पद को प्राप्त होते हैं। जैसे सूर्य जल को वर्षा कर नदियों को भरता पूरी करता है वैसे विद्वान् जन सत्य वचनों को वर्षा कर मनुष्यों के आत्माओं को पूर्ण करते हैं ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

ये धीरासः कवयो हृदा नाना नॄन् रक्षमाणा सिषासन्तः सिन्धुं सूर्यइवाजुर्यं पदं नयन्ति ते परमात्मानं पर्यपश्यन्त य एभ्यो विद्याभिशिक्षे प्राप्याविरभवत् सोऽपि तत्पदमाप्नोति ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (धीरासः) ध्यानवन्तो विद्वांसः (पदम्) पदनीयम् (कवयः) विक्रान्तप्रज्ञाः शास्त्रविदो विद्वांसः (नयन्ति) प्राप्नुवन्ति (नाना) अनेकान् (हृदा) हृदयेन (रक्षमाणाः) ये रक्षन्ति ते अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (अजुर्यम्) यदजूर्षु हानिरहितेषु साधु (सिषासन्तः) संभक्तुमिच्छन्तः (परि) सर्वतः (अपश्यन्त) पश्यन्ति (सिन्धुम्) नदीम् (आविः) प्राकट्ये (एभ्यः) (अभवत्) भवति (सूर्य्यः) सवितेव (नॄन्) नायकान् मनुष्यान् ॥ ४ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये सर्वानात्मवत्सुखदुःखव्यवस्थायां विदित्वा न्यायमेवाश्रयन्ति तेऽव्ययं पदमाप्नुवन्ति यथा सूर्यो जलं वर्षयित्वा नदीः पिपर्त्ति तथा विद्वांसो सत्यवचांसि वर्षयित्वा मनुष्यात्मनः पिपुरति ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सर्वांना आपल्या आत्म्याप्रमाणे सुख-दुःख होते ही व्यवस्था जाणून जे न्यायाचा अवलंब करतात त्यांना अव्यय पद प्राप्त होते. जसा सूर्य जलाचा वर्षाव करून नद्यांना पूर्ण जलयुक्त करतो तसे विद्वान लोक सत्यवचनाचा वर्षाव करून माणसांच्या आत्म्यांना पूरित करतात. ॥ ४ ॥