Go To Mantra

त्वं ह्य॑ग्ने दि॒व्यस्य॒ राज॑सि॒ त्वं पार्थि॑वस्य पशु॒पा इ॑व॒ त्मना॑। एनी॑ त ए॒ते बृ॑ह॒ती अ॑भि॒श्रिया॑ हिर॒ण्ययी॒ वक्व॑री ब॒र्हिरा॑शाते ॥

English Transliteration

tvaṁ hy agne divyasya rājasi tvam pārthivasya paśupā iva tmanā | enī ta ete bṛhatī abhiśriyā hiraṇyayī vakvarī barhir āśāte ||

Mantra Audio
Pad Path

त्वम्। हि। अ॒ग्ने॒। दि॒व्यस्य॑। राज॑सि। त्वम्। पार्थि॑वस्य। प॒शु॒पाःऽइ॑व। त्मना॑। एनी॒ इति॑। ते॒। ए॒ते इति॑। बृ॒ह॒ती इति॑। अ॒भि॒ऽश्रिया॑। हि॒र॒ण्ययी॒ इति॑। वक्व॑री॒ इति॑। ब॒र्हिः। आ॒शा॒ते॒ इति॑ ॥ १.१४४.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:144» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:13» Mantra:6 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:6


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) सूर्य के समान प्रकाशमान विद्वान् ! (त्वं, हि) आप ही (पशुपाइव) पशुओं की पालना करनेवाले के समान (त्मना) अपने से (दिव्यस्य) अन्तरिक्ष में हुई वृष्टि आदि के विज्ञान को (राजसि) प्रकाशित करते वा (त्वम्) आप (पार्थिवस्य) पृथिवी में जाने हुए पदार्थों के विज्ञान का प्रकाश करते हो (एते) ये प्रत्यक्ष (एनी) अपनी अपनी कक्षा में घूमनेवाले (बृहती) अतीव विस्तारयुक्त (अभिश्रिया) सब ओर से शोभायमान (हिरण्ययी) बहुत हिरण्य जिनमें विद्यमान (वक्वरी) प्रशंसित सूर्यमण्डल और भूमण्डल वा (ते) आपके ज्ञान के अनुकूल (बर्हिः) वृद्धि को (आशाते) व्याप्त होते हैं ॥ ६ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे ऋद्धि और सिद्धि पूरी लक्ष्मी को करती हैं वैसे आत्मवान् पुरुष परमेश्वर और पृथिवी के राज्य में अच्छे प्रकार प्रकाशित होता जैसे पशुओं का पालनेवाला प्रीति से अपने पशुओं की रक्षा करता है, वैसे सभापति अपने प्रजाजनों की रक्षा करे ॥ ६ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे अग्ने त्वं हि पशुपाइव त्मना दिव्यस्य राजसि त्वं पार्थिवस्य राजसि ये एते एनी बृहती अभिश्रिया हिरण्ययी वक्वरी द्यावापृथिव्यौ ते विज्ञानानुकूलं बर्हिराशाते ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (हि) किल (अग्ने) सूर्यइव प्रकाशमान (दिव्यस्य) दिवि भवस्य वृष्ट्यादिविज्ञानस्य (राजसि) प्रकाशयसि (त्वम्) (पार्थिवस्य) पृथिव्यां विदितस्य पदार्थविज्ञानस्य (पशुपाइव) यथा पशुपालकस्तथा (त्मना) आत्मना (एनी) ये इतस्ते (ते) तव (एते) प्रत्यक्षे (बृहती) महत्यौ (अभिश्रिया) अभितः शोभायुक्ते (हिरण्ययी) प्रभूतहिरण्यमय्यौ (वक्वरी) प्रशंसिते (बर्हिः) वर्द्धनम् (आशाते) व्याप्नुतः ॥ ६ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा ऋद्धिसिद्धयः पूर्णां श्रियं कुर्वन्ति तथात्मवान् पुरुषः परमेश्वरे भूराज्ये च सुप्रकाशते यथा वा पशुपालः स्वान्पशून् प्रीत्या रक्षति तथा सभापतिः स्वाः प्रजा रक्षेत् ॥ ६ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जशा रिद्धी सिद्धी पूर्ण लक्ष्मीयुक्त करतात. तसा आत्मवान पुरुष परमेश्वर व पृथ्वीवरील राज्यामध्ये सुप्रकाशित होतो. जसा पशूंचा पालनकर्ता प्रेमाने आपल्या पशूंचे रक्षण करतो तसे सभापतीने आपल्या प्रजेचे रक्षण करावे. ॥ ६ ॥