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न यो वरा॑य म॒रुता॑मिव स्व॒नः सेने॑व सृ॒ष्टा दि॒व्या यथा॒शनि॑:। अ॒ग्निर्जम्भै॑स्तिगि॒तैर॑त्ति॒ भर्व॑ति यो॒धो न शत्रू॒न्त्स वना॒ न्यृ॑ञ्जते ॥

English Transliteration

na yo varāya marutām iva svanaḥ seneva sṛṣṭā divyā yathāśaniḥ | agnir jambhais tigitair atti bharvati yodho na śatrūn sa vanā ny ṛñjate ||

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Pad Path

न। यः। वरा॑य। म॒रुता॑म्ऽइव। स्व॒नः। सेना॑ऽइव। सृ॒ष्टा। दि॒व्या। यथा॑। अ॒शनिः॑। अ॒ग्निः। जम्भैः॑। ति॒गि॒तैः। अ॒त्ति॒। भर्व॑ति। न। शत्रू॑न्। सः। वना॑। नि। ऋ॒ञ्ज॒ते॒ ॥ १.१४३.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:143» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:12» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब विद्वान् के विषय में कहा है ।

Word-Meaning: - (यः) जो (अग्निः) आग (मरुतामिव) पवन वा विद्वानों के (स्वनः) शब्द के समान (सृष्टा, सेनेव) शत्रुदल में चक्रव्यूहादि रचना से रची हुई सेना के समान वा (यथा) जैसे (दिव्या) कारण वा वायु आदि कार्य द्रव्य में उत्पन्न हुई (अशनिः) बिजुली के वैसे (वराय) स्वीकार करने के लिये (न) नहीं हो सकता अर्थात् तेजी के कारण रुक नहीं सकता (सः) वह (तिगितैः) तीक्ष्ण (जम्भैः) स्फूर्तियों से (अत्ति) भक्षण करता अर्थात् लकड़ी आदि को खाता है (योधः) योधा के (न) समान (शत्रून्) शत्रुओं को (भर्वति) नष्ट करता अर्थात् धनुर्विद्या में प्रविष्ट किया हुआ शत्रुदल को भूँजता है और (वना) वनों को (नि, ऋञ्जते) निरन्तर सिद्ध करता है ॥ ५ ॥
Connotation: - प्रचण्ड वायु से प्रेरित अति जलता हुआ अग्नि शत्रुओं को मारने के तुल्य पदार्थों को जलाता है, वह सहसा नहीं रुक सकता ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वद्विषयमाह ।

Anvay:

योऽग्निर्मरुतामिव स्वनो वा सृष्टा सेनेव वा यथा दिव्याऽशनिस्तथा वराय न शक्यः स तिगितैर्जम्भैरत्ति योधो न शत्रून् भर्वति वना निऋञ्जते ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (न) निषेधे (यः) (वराय) स्वीकरणाय (मरुतामिव) यथा वायूनां विदुषां तथा (स्वनः) शब्दः (सेनेव) (सृष्टा) (दिव्या) दिवि कारणे वाय्वादिकार्ये च भवा (यथा) (अशनिः) विद्युत् (अग्निः) पावकः (जम्भैः) विस्फुरणैः (तिगितैः) तीक्ष्णैः (अत्ति) भक्षयति (भर्वति) हिनस्ति (योधः) प्रहर्त्ता (न) इव (शत्रून्) (सः) (वना) वनानि (नि) (ऋञ्जते) साध्नोति ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। प्रचण्डवायुना प्रेरितोऽग्निः शत्रुहिंसनमिव पदार्थान् दहति नासौ सहसा निवारणीय इति ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - प्रचंड वायूने प्रेरित असलेले ज्वलनशील अग्नी शत्रूंचे हनन केल्याप्रमाणे पदार्थांना जाळतो, तो सहसा थांबत नाही. ॥ ५ ॥