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रथो॒ न या॒तः शिक्व॑भिः कृ॒तो द्यामङ्गे॑भिररु॒षेभि॑रीयते। आद॑स्य॒ ते कृ॒ष्णासो॑ दक्षि सू॒रय॒: शूर॑स्येव त्वे॒षथा॑दीषते॒ वय॑: ॥

English Transliteration

ratho na yātaḥ śikvabhiḥ kṛto dyām aṅgebhir aruṣebhir īyate | ād asya te kṛṣṇāso dakṣi sūrayaḥ śūrasyeva tveṣathād īṣate vayaḥ ||

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Pad Path

रथः॑। न। या॒तः। शिक्व॑ऽभिः। कृ॒तः। द्याम्। अङ्गे॑भिः। अ॒रु॒षेभिः॑। ई॒य॒ते॒। आत्। अ॒स्य॒। ते। कृ॒ष्णासः॑। ध॒क्षि॒। सू॒रयः॑। शूर॑स्यऽइव। त्वे॒षथा॑त्। ई॒ष॒ते॒। वयः॑ ॥ १.१४१.८

Rigveda » Mandal:1» Sukta:141» Mantra:8 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:9» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (कृष्णासः) जो खींचते हैं वे (सूरयः) विद्वान् जन जैसे (शिक्वभिः) कीलें और बन्धनों से (कृतः) सिद्ध किया (द्याम्) आकाश को (अरुषेभिः) लाल रङ्गवाले (अङ्गेभिः) अङ्गों के साथ (यातः) प्राप्त हुआ (रथः) रथ (ईयते) चलता है (न) वैसे वा (वयः) पक्षि और (शूरस्येव, त्वेषथात्) शूरवीर के प्रकाशित व्यवहार से जैसे वैसे कला-कुशलता से (ईषते) देखते हैं वे सुख पाते हैं, हे विद्वन् ! (आत्) इसके अनन्तर जो आप अग्नि के समान पापों को (धक्षि) जलाते हो (अस्य) इन (ते) आपको सुख होता है ॥ ८ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे उत्तम विमान से अन्तरिक्ष में आना-जाना सुख से जन करते हैं, वैसे विद्वान् जन विद्या से धर्म सम्बन्धी मार्ग में विचरने को समर्थ होते हैं ॥ ८ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

कृष्णासः सूरयः शिक्वभिः कृतो द्यामरुषेभिरङ्गेभिस्सह यातो रथ ईयते नेव वय इव शूरस्येव त्वेषथाद् व्यवहारादिव कलाकौशलादीषते सुखमाप्नुवन्ति हे विद्वन्नाद्यस्त्वमग्निरिव पापानि धक्षि। अस्य ते सुखं जायते ॥ ८ ॥

Word-Meaning: - (रथः) रमणीयं यानम् (न) इव (यातः) प्राप्तः (शिक्वभिः) कीलकबन्धनादिभिः (कृतः) संपादितः (द्याम्) आकाशम् (अङ्गेभिः) अङ्गैः (अरुषेभिः) रक्तैर्गुणैः (ईयते) गच्छति (आत्) आनन्तर्ये (अस्य) (ते) (कृष्णासः) ये कृषन्ति ते (धक्षि) दहसि। अत्र शपो लुक्। (सूरयः) विद्वांसः (शूरस्येव) यथा शूरवीरस्य (त्वेषथात्) प्रदीप्तात् (ईषते) पश्यन्ति (वयः) पक्षिण इव ॥ ८ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा शोभनेन विमानेनान्तरिक्षे गमनाऽऽगमने सुखेन जनाः कुर्वन्ति तथा विद्वांसो विद्यया धर्म्ये मार्गे विचरितुं शक्नुवन्ति ॥ ८ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसे लोक अंतरिक्षात उत्तम विमानाने सहजतेने गमनागमन करतात तसे विद्वान लोक धर्ममार्गात चालण्यास समर्थ असतात. ॥ ८ ॥