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वि यदस्था॑द्यज॒तो वात॑चोदितो ह्वा॒रो न वक्वा॑ ज॒रणा॒ अना॑कृतः। तस्य॒ पत्म॑न्द॒क्षुष॑: कृ॒ष्णजं॑हस॒: शुचि॑जन्मनो॒ रज॒ आ व्य॑ध्वनः ॥

English Transliteration

vi yad asthād yajato vātacodito hvāro na vakvā jaraṇā anākṛtaḥ | tasya patman dakṣuṣaḥ kṛṣṇajaṁhasaḥ śucijanmano raja ā vyadhvanaḥ ||

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Pad Path

वि। यत्। अस्था॑त्। य॒ज॒तः। वात॑ऽचोदितः। ह्वा॒रः। न। वक्वा॑। ज॒रणाः॑। अना॑कृतः। तस्य॑। पत्म॑न्। द॒क्षुषः॑। कृ॒ष्णऽजं॑हसः। शुचि॑ऽजन्मनः। रजः॑। आ। विऽअ॑ध्वनः ॥ १.१४१.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:141» Mantra:7 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:9» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (यत्) जो (यजतः) सङ्ग करने और (वक्वा) कहनेवाला (अनाकृतः) रुकावट को न प्राप्त हुआ (वातचोदितः) प्राण वा पवन से प्रेरित विद्वान् (ह्वारः) कुटिलता करते हुए अग्नि के (न) समान (व्यस्थात्) विशेषता से स्थिर है (तस्य) उस (शुचिजन्मनः) पवित्र जन्मा विद्वान् के (पत्मन्) चाल-चलन में (कृष्णजंहसः) काले मारने हैं जिसके उस (दक्षुषः) जलाते हुए (आ, व्यध्वनः) अच्छे प्रकार विरुद्ध मार्गवाले अग्नि के (रजः) कण से समान (जरणाः) प्रशंसा स्तुति होती हैं ॥ ७ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो धर्म में अच्छी स्थिरता रखते हैं, वे सूर्य के समान प्रसिद्ध होते हैं और उनकी की हुई कीर्त्ति सब दिशाओं में विराजमान होती है ॥ ७ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

यद्यो यजतो वक्वा अनाकृतो वातचोदितो विद्वान् ह्वारोऽग्निर्न व्यस्थात् तस्य शुचिजन्मनः पत्मन्मार्गे कृष्णजंहसो धक्षुष आ व्यध्वनोऽग्ने रज इव जरणाः प्रशंसा जायन्ते ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (वि) विशेषेण (यत्) यः (अस्थात्) तिष्ठेत् (यजतः) संगन्ता (वातचोदितः) वायुना प्राणेन वा प्रेरितः (ह्वारः) कुटिलतां कारयन् (न) इव (वक्वा) वक्ता (जरणाः) स्तुतयः (अनाकृतः) न आकृतो न निवारितः (तस्य) (पत्मन्) (दक्षुषः) दहतः (कृष्णजंहसः) कृष्णानि जंहांसि हननानि यस्मिँस्तस्य (शुचिजन्मनः) शुचेः पवित्राज्जन्म यस्य तस्य (रजः) कणः (आ) (व्यध्वनः) विरुद्धोऽध्वा यस्य सः ॥ ७ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। ये धर्ममातिष्ठन्ति ते सूर्य इव प्रसिद्धा जायन्ते तत्कृता कीर्त्तिः सर्वासु दिक्षु विराजते ॥ ७ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जे धर्मात चांगले स्थिर असतात ते सूर्याप्रमाणे प्रसिद्ध होतात व त्यांची कीर्ती सर्व दिशांमध्ये पसरते. ॥ ७ ॥