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अस्ता॑व्य॒ग्निः शिमी॑वद्भिर॒र्कैः साम्रा॑ज्याय प्रत॒रं दधा॑नः। अ॒मी च॒ ये म॒घवा॑नो व॒यं च॒ मिहं॒ न सूरो॒ अति॒ निष्ट॑तन्युः ॥

English Transliteration

astāvy agniḥ śimīvadbhir arkaiḥ sāmrājyāya prataraṁ dadhānaḥ | amī ca ye maghavāno vayaṁ ca mihaṁ na sūro ati niṣ ṭatanyuḥ ||

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Pad Path

अस्ता॑वि। अ॒ग्निः। शिमी॑वत्ऽभिः। अ॒र्कैः। साम्रा॑ज्याय। प्रऽत॒रम्। दधा॑नः। अ॒मी। च॒। ये। म॒घवा॑नः। व॒यम्। च॒। मिह॑म्। न। सूरः॑। अति॑। निः। त॒न्युः॒ ॥ १.१४१.१३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:141» Mantra:13 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:9» Mantra:8 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (शिमीवद्भिः) प्रशंसित कर्मों से युक्त (अर्कैः) सत्कार करने योग्य विद्वानों के साथ (प्रतरम्) शत्रुबलों को जिससे तरें उस सेनागण को (दधानः) धारण करता हुआ (अग्निः) सूर्य के समान सुशीलता में प्रकाशित (साम्राज्याय) चक्रवर्त्ति राज्य के लिये (अस्तावि) स्तुति पाता है (च) और (ये) जो (अमी) वे (मघवानः) परमपूजित धनयुक्त जन (सुरः) सूर्य (मिहम्) वर्षा को (न) जैसे वैसे विद्या को (अति, नि, ततन्युः) अतीव निरन्तर विस्तारें उस पूर्वोक्त सज्जन (च) (और) पीछे कहे हुए जनों की (वयम्) हम लोग प्रशंसा करें ॥ १३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्य धार्मिक विद्वानों से अच्छी शिक्षा को पाये हुए धर्म से राज्य का विस्तार करते हुए प्रयत्न करते हैं, वे ही राज्य, विद्या और धर्म के उपदेश में अच्छे प्रकार स्थापन करने योग्य हैं ॥ १३ ॥इस सूक्त में विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति वर्त्तमान है, यह जानना चाहिये ॥यह एकसौ इकतालीसवाँ सूक्त और नववाँ वर्ग पूरा हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

यः शिमीवद्भिरर्कैः प्रतरं दधानोऽग्निः साम्राज्यायास्तावि ये चामी मघवानः सूरो मिहन्नेव विद्यामतिनिष्टतन्युः तं ताँश्च वयं प्रशंसेम ॥ १३ ॥

Word-Meaning: - (अस्तावि) स्यूयते (अग्निः) सूर्य इव सुशीलप्रकाशितः (शिमीवद्भिः) प्रशंसितकर्मयुक्तैः (अर्कैः) सत्कर्त्तव्यैर्विद्वद्भिः सह (साम्राज्याय) चक्रवर्त्तिनो भावाय (प्रतरम्) प्रतरति शत्रुबलानि येन तत् सैन्यम् (दधानः) (अमी) (च) (ये) (मघवानः) परमपूजितधनयुक्ताः (वयम्) (च) (मिहम्) वृष्टिम् (न) इव (सूरः) सूर्यः (अति) (निः) (ततन्युः) विस्तृणीयुः ॥ १३ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्ये धार्मिकैर्विद्वद्भिः सुशिक्षिता धर्मेण राज्यं विस्तृणन्तः प्रयतन्ते त एव राज्ये विद्याधर्मोपदेशे च संस्थापनीया इति ॥ १३ ॥अत्र विद्वद्गुणवर्णनादेतत्सूक्तार्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह संगतिर्वर्तत इति वेद्यम् ॥इत्येकचत्वारिंशदुत्तरं शततमं सूक्तं नवमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे धार्मिक विद्वानांकडून चांगले शिक्षण घेऊन धर्माने राज्याचा विस्तार करण्याचा प्रयत्न करतात त्यांनाच राज्य, विद्या व धर्माचा उपदेश करण्यास नेमावे. ॥ १३ ॥