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उ॒त न॑: सु॒द्योत्मा॑ जी॒राश्वो॒ होता॑ म॒न्द्रः शृ॑णवच्च॒न्द्रर॑थः। स नो॑ नेष॒न्नेष॑तमै॒रमू॑रो॒ऽग्निर्वा॒मं सु॑वि॒तं वस्यो॒ अच्छ॑ ॥

English Transliteration

uta naḥ sudyotmā jīrāśvo hotā mandraḥ śṛṇavac candrarathaḥ | sa no neṣan neṣatamair amūro gnir vāmaṁ suvitaṁ vasyo accha ||

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Pad Path

उ॒त। नः॒। सु॒ऽद्योत्मा॑। जी॒रअ॑श्वः। होता॑। म॒न्द्रः। शृ॒ण॒व॒त्। च॒न्द्रऽर॑थः। सः। नः॒। ने॒ष॒त्। नेष॑ऽतमैः। अमू॑रः। अ॒ग्निः। वा॒मम्। सु॒ऽवि॒तम्। वस्यः॑। अच्छ॑ ॥ १.१४१.१२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:141» Mantra:12 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:9» Mantra:7 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (मन्द्रः) प्रशंसायुक्त (चन्द्ररथः) जिसके रथ में चाँदी, सोना विद्यमान जो (सुद्योत्मा) उत्तम प्रकाशवाला (जीराश्वः) जिसके वेगवान् बहुत घोड़े वह (होता) दानशील जन (नः) हम लोगों को (शृणवत्) सुने (उत) और जो (अमूरः) गमनशील (वस्यः) निवास करने योग्य (अग्निः) अग्नि के समान प्रकाशमान जन (सुवितम्) उत्पन्न किये हुए (वामम्) अच्छे रूप को (नेषतमैः) अतीव प्राप्ति करानेवाले गुणों से (अच्छ) अच्छा (नेषत्) प्राप्त करे (सः) वह (नः) हम लोगों के बीच प्रशंसित होता है ॥ १२ ॥
Connotation: - जो सबके न्याय का सुननेवाला साङ्गोपाङ्ग सामग्रीसहित विद्याप्रकाशयुक्त सब विद्या के उत्साहियों को विद्यायुक्त करता है, वह प्रकाशात्मा होता है ॥ १२ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

यो मन्द्रश्चन्द्ररथः सुद्योत्मा जीराश्वो होता नोऽस्मान् शृणवत्। उतापि योऽमूरो वस्योऽग्निरिव सुवितं वामं सुरूपं नेषतमैरच्छ नेषत् स नः प्रशंसितो भवति ॥ १२ ॥

Word-Meaning: - (उत) (नः) अस्मान् (सुद्योत्मा) सुष्ठुप्रकाशः (जीराश्वः) जीरा वेगवन्तो बहवोऽश्वा यस्य सः (होता) दाता (मन्द्रः) प्रशंसितः (शृणवत्) शृणुयात् (चन्द्ररथः) चन्द्रं रजतं सुवर्णं वा रथे यस्य सः (सः) (नः) अस्माकम् (नेषत्) नयेत् (नेषतमैः) अतिशयेन प्राप्तिकारकैः (अमूरः) गन्ता (अग्निः) (वामम्) सुरूपम् (सुवितम्) उत्पादितम् (वस्यः) वस्तुं योग्यः (अच्छ) सम्यक् ॥ १२ ॥
Connotation: - यः सर्वेषां न्यायस्य श्रोता साङ्गोपाङ्गसामग्रिर्विद्याप्रकाशयुक्तः सर्वान् विद्योत्सुकान् विद्यायुक्तान् करोति स प्रकाशात्मा जायते ॥ १२ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो सर्वांचे न्यायाने ऐकणारा सकल विद्यायुक्त असून विद्या शिकण्यास उत्सुक असणाऱ्यास विद्यायुक्त करतो तो प्रकाशमान आत्मा असतो. ॥ १२ ॥