बळि॒त्था तद्वपु॑षे धायि दर्श॒तं दे॒वस्य॒ भर्ग॒: सह॑सो॒ यतो॒ जनि॑। यदी॒मुप॒ ह्वर॑ते॒ साध॑ते म॒तिर्ऋ॒तस्य॒ धेना॑ अनयन्त स॒स्रुत॑: ॥
baḻ itthā tad vapuṣe dhāyi darśataṁ devasya bhargaḥ sahaso yato jani | yad īm upa hvarate sādhate matir ṛtasya dhenā anayanta sasrutaḥ ||
बट्। इ॒त्था। तत्। वपु॑षे। धा॒यि॒। द॒र्श॒तम्। दे॒वस्य॑। भर्गः॑। सह॑सः। यतः॑। जनि॑। यत्। ई॒म्। उप॑। ह्वर॑ते। साध॑ते। म॒तिः। ऋ॒तस्य॑। धेनाः॑। अ॒न॒य॒न्त॒। स॒ऽस्रुतः॑ ॥ १.१४१.१
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब एकसौ इकतालीसवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में फिर विद्वानों के गुणों का उपदेश करते हैं ।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्विद्वद्गुणानुपदिशति ।
हे मनुष्या यद् दर्शतं देवस्य भर्गः प्रति मम मतिरुपह्वरते साधते च सस्रुत ऋतस्य धेना ईमनयन्त यतस्तत् सहसो जनि ततस्तद् बडित्था वपुषे युष्माभिर्धायि ॥ १ ॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणले पाहिजे.