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अ॒धी॒वा॒सं परि॑ मा॒तू रि॒हन्नह॑ तुवि॒ग्रेभि॒: सत्व॑भिर्याति॒ वि ज्रय॑:। वयो॒ दध॑त्प॒द्वते॒ रेरि॑ह॒त्सदानु॒ श्येनी॑ सचते वर्त॒नीरह॑ ॥

English Transliteration

adhīvāsam pari mātū rihann aha tuvigrebhiḥ satvabhir yāti vi jrayaḥ | vayo dadhat padvate rerihat sadānu śyenī sacate vartanīr aha ||

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Pad Path

अ॒धी॒वा॒सम्। परि॑। मा॒तुः। रि॒हन्। अह॑। तु॒वि॒ऽग्रेभिः। सत्व॑ऽभिः। या॒ति॒। वि। ज्रयः॑। वयः॑। दध॑त्। प॒त्ऽवते॑। रेरि॑हत्। सदा॑। अनु॑। श्येनी॑। स॒च॒ते॒। व॒र्त॒निः। अह॑ ॥ १.१४०.९

Rigveda » Mandal:1» Sukta:140» Mantra:9 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:6» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे वीर ! जैसे (ज्रयः) वेगयुक्त अग्नि (मातुः) मान देनेवाली पृथिवी के (अधिवासम्) ऊपर से शरीर को जिससे ढाँपते उस वस्त्र के समान घास आदि को (परि, रिहन्) परित्याग करता हुआ (अह) प्रसिद्ध में (तुविग्रेभिः) बहुत शब्दोंवाले (सत्वभिः) प्राणियों के साथ (वि, याति) विविध प्रकार से प्राप्त होता है और जैसे (वर्त्तनिः) वर्त्तमान (श्येनी) वाज पक्षी की स्त्री वाजिनी (वयः) अवस्था को (दधत्) धारण करती हुई (पद्वते) पगोंवाले द्विपद-चतुष्पद प्राणी के लिये (सचते) प्राप्त होती है वैसे दुष्टों को (अनु, रेरिहत्) अनुक्रम से बार-बार छोड़ते हुए आप (सदा) सदा (अह) ही उनको निग्रह स्थान को पहुँचाओ ॥ ९ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे अग्नि जङ्गलादिकों को जलाता वा पर्वतों को तोड़ता वैसे अन्याय और अधर्मात्माओं की निवृत्ति कर और दुष्टों के अभिमानों को तोड़के सत्य धर्म का तुम प्रचार करो ॥ ९ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे वीर यथा ज्रयोऽग्निमातुरधिवासं परिरिहन्नह तुविग्रेभिः सत्वभिर्वियाति यथा च वर्त्तनिः श्येनी वयो दधत् पद्वते सचते तथा दुष्टाननु रेरिहत् सन् भवान् सदाह निगृह्णीयात् ॥ ९ ॥

Word-Meaning: - (अधीवासम्) अधीवासमिव घासादिकम् (परि) (मातुः) मान्यप्रदायाः पृथिव्याः (रिहन्) परित्यजन् (अह) (तुविग्रेभिः) बहुशब्दवद्भिः (सत्वभिः) प्राणिभिः (याति) प्राप्नोति (वि) (ज्रयः) वेगयुक्तः (वयः) आयुः (दधत्) धरन् (पद्वते) पादौ विद्येते यस्य तस्मै (रेरिहत्) अतिशयेन त्यजेत् (सदा) (अनु) (श्येनी) श्येनस्य स्त्री (सचते) प्राप्नोति (वर्त्तनिः) वर्त्तमानः (अह) निरोधे ॥ ९ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यथाऽग्निर्जङ्गलानि दहति पर्वतान् त्रोटयति तथाऽन्यायमधार्मिकांश्च निवर्त्य दुष्टानामभिमानान् त्रोटयित्वा सत्यधर्मं यूयं प्रचारयत ॥ ९ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसा अग्नी जंगलांना जाळतो किंवा पर्वत तोडतो तसे अन्याय व अधर्मात्म्यांचा नाश करून दुष्टांचा अभिमान नष्ट करून सत्य धर्माचा प्रचार करा. ॥ ९ ॥