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तम॒ग्रुव॑: के॒शिनी॒: सं हि रे॑भि॒र ऊ॒र्ध्वास्त॑स्थुर्म॒म्रुषी॒: प्रायवे॒ पुन॑:। तासां॑ ज॒रां प्र॑मु॒ञ्चन्ने॑ति॒ नान॑द॒दसुं॒ परं॑ ज॒नय॑ञ्जी॒वमस्तृ॑तम् ॥

English Transliteration

tam agruvaḥ keśinīḥ saṁ hi rebhira ūrdhvās tasthur mamruṣīḥ prāyave punaḥ | tāsāṁ jarām pramuñcann eti nānadad asum paraṁ janayañ jīvam astṛtam ||

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Pad Path

तम्। अ॒ग्रुवः॑। के॒शिनीः॑। सम्। हि। रे॒भि॒रे। ऊ॒र्ध्वाः। त॒स्थुः॒। म॒म्रुषीः॑। प्र। आ॒यवे॑। पुन॒रिति॑। तासा॑म्। ज॒राम्। प्र॑ऽमु॒ञ्चन्। ए॒ति॒। नान॑दत्। असु॑म्। पर॑म्। ज॒नय॑न्। जी॒वम्। अस्तृ॑तम् ॥ १.१४०.८

Rigveda » Mandal:1» Sukta:140» Mantra:8 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:6» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (अग्रुवः) अग्रगण्य (केशिनीः) प्रशंसनीय केशोंवाली युवावस्था को प्राप्त होती हुई कन्या (तम्) उस विद्वान् पति को (सं, रेभिरे) सुन्दरता से कहती हैं वे (हि) ही (प्रायवे) पठाने अर्थात् दूसरे देश उस पति के पहुँचाने को (मम्रुषीः) मरी सी हों (पुनः) फिर उसीके घर आने समय (ऊर्ध्वाः) ऊँची पदवी पाये हुई सी (तस्थुः) स्थिर होती हैं, जो (अस्तृतम्) नष्ट न किया गया (परम्) सबको इष्ट (असुम्) ऐसे प्राण को वा (जीवम्) जीवात्मा को (नानदत्) निरन्तर रटावे और (तासाम्) उक्त उन कन्याओं के (जराम्) बुढ़ापे को (प्रमुञ्चन्) अच्छे प्रकार छोड़ता और विद्याओं को (जनयन्) उत्पन्न कराता हुआ उत्तम शिक्षाओं का प्रचार कराता है वह उत्तम जन्म (एति) पाता है ॥ ८ ॥
Connotation: - जो कन्या जन ब्रह्मचर्य्य के साथ समस्त विद्याओं का अभ्यास करती हैं, वे इस संसार में प्रशंसित हो और बहुत सुख भोग जन्मान्तर में भी उत्तम सुख को प्राप्त होती हैं और जो विद्वान् लोग भी शरीर और आत्मा के बल को नष्ट नहीं करते, वे वृद्धावस्था और रोगों से रहित होते हैं ॥ ८ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

या अग्रुवः केशिनीस्तं संरेभिरे ता हि प्रायवे मम्रुषीः पुनरूर्ध्वास्तस्थुः। योऽस्तृतं परमसुं जीवं नानदत् तासां जरां प्रमुञ्चन् विद्या जनयन् सुशिक्षाः प्रचारयति स उत्तमं जन्मैति ॥ ८ ॥

Word-Meaning: - (तम्) विद्वांसं पतिम् (अग्रुवः) अग्रगण्याः (केशिनीः) प्रशंसनीयकेशाः (सम्) (हि) खलु (रेभिरे) (ऊर्ध्वाः) उच्चपदव्यः (तस्थुः) तिष्ठन्ति (मम्रुषीः) म्रियमाणाः (प्र, आयवे) प्रापणाय (पुनः) (तासाम्) (जराम्) वृद्धावस्थाम् (प्रमुञ्चन्) हापयन् (एति) प्राप्नोति (नानदत्) (असुम्) प्राणम् (परम्) इष्टम् (जनयन्) प्रकाशयन् (जीवम्) जीवात्मानम् (अस्तृतम्) अहिंसितम् ॥ ८ ॥
Connotation: - याः कन्या ब्रह्मचर्य्येणाऽखिला अभ्यस्यन्ति ता इह प्रशंसिता भूत्वा बहुसुखं भुक्त्वा जन्मान्तरेऽपि श्रेष्ठं सुखं प्राप्नुवन्ति, ये विद्वांसोऽपि शरीरात्मबलं न हिंसन्ति ते जरारोगरहिता जायन्ते ॥ ८ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ज्या कन्या ब्रह्मचर्यपूर्वक संपूर्ण विद्यांचा अभ्यास करतात त्यांची या जगात प्रशंसा होते व पुष्कळ सुख मिळते तसेच जन्मान्तरीही उत्तम सुख प्राप्त होते व जे विद्वान लोक शरीर व आत्म्याचे बळ नष्ट करीत नाहीत त्यांना वृद्धावस्था व त्रास देत नाहीत. ॥ ८ ॥