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अ॒भि द्वि॒जन्मा॑ त्रि॒वृदन्न॑मृज्यते संवत्स॒रे वा॑वृधे ज॒ग्धमीं॒ पुन॑:। अ॒न्यस्या॒सा जि॒ह्वया॒ जेन्यो॒ वृषा॒ न्य१॒॑न्येन॑ व॒निनो॑ मृष्ट वार॒णः ॥

English Transliteration

abhi dvijanmā trivṛd annam ṛjyate saṁvatsare vāvṛdhe jagdham ī punaḥ | anyasyāsā jihvayā jenyo vṛṣā ny anyena vanino mṛṣṭa vāraṇaḥ ||

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Pad Path

अ॒भि। द्वि॒ऽजन्मा॑। त्रि॒ऽवृत्। अन्न॑म्। ऋ॒ज्य॒ते॒। स॒म्व॒त्स॒रे। व॒वृ॒धे॒। ज॒ग्धम्। ई॒म् इति॑। पुन॒रिति॑। अ॒न्यस्य॑। आ॒सा। जि॒ह्वया॑। जेन्यः॑। वृषा॑। नि। अ॒न्येन॑। व॒निनः॑। मृ॒ष्ट॒। वा॒र॒णः ॥ १.१४०.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:140» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:5» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जिसने (संवत्सरे) संवत्सर पूरे हुए पर (त्रिवृत्) कर्म, उपासना और ज्ञानविषय में जो साधनरूप से वर्त्तमान उस (अन्नम्) भोगने योग्य पदार्थ वा (ऋज्यते) उपार्जन किया वा (अन्यस्य) और के (आसा) मुख और (जिह्वया) जीभ के साथ (ईम्) वही अन्न (पुनः) वारवार (जग्धम्) खाया हो वह (द्विजन्मा) विद्या में द्वितीय जन्मवाला ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य कुल का जन (अभि, वावृधे) सब ओर से बढ़ता (जेन्यः) विजयशील और (वृषा) बैल के समान अत्यन्त बली होता है इससे (अन्येन) और मित्रवर्ग के साथ (वारणः) समस्त दोषों की निवृत्ति करनेवाला तूँ (वनिनः) जलों को (नि, मृष्ट) निरन्तर शुद्ध कर ॥ २ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य अन्न आदि बहुत पदार्थ इकट्ठे कर उनको बना और भोजन करते वा दूसरों को कराते तथा हवन आदि उत्तम कामों से वर्षा की शुद्धि करते हैं, वे अत्यन्त बली होते हैं ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे जिज्ञासो येन संवत्सरे पूर्णे त्रिवृदन्नमृज्यतेऽन्यस्यासा जिह्वया तदन्नमीं पुनर्जग्धं स द्विजन्माऽभिवावृधे जेन्यो वृषा च भवत्यतोऽन्येन वारणो वनिनो निमृष्ट ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (अभि) (द्विजन्मा) विद्याजन्मद्वितीयः (त्रिवृत्) यत् कर्मोपासनाज्ञानेषु साधकत्वेन वर्त्तसे (अन्नम्) अत्तव्यम् (ऋज्यते) उपार्ज्यते (संवत्सरे) (वावृधे) वर्द्धते। अत्र तुजादीनामभ्यासदीर्घत्वम्। (जग्धम्) भक्तम् (ईम्) सर्वतः (पुनः) (अन्यस्य) (आसा) आस्येन (जिह्वया) (जेन्यः) जेतुं शीलः (वृषा) वृषेव बलिष्ठः (नि) (अन्येय) (वनिनः) वनानि जलानि। वनमित्युदकना०। निघं० १। १२। (मृष्ट) मार्जय (वारणः) सर्वदोषनिवारकः ॥ २ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या अन्नादीन्पदार्थान् पुष्कलान् संचित्य सुसंस्कृत्य भुञ्जतेऽन्यान् भोजयन्ति तथा हवनादिना वृष्टिशुद्धिं कुर्वन्ति ते बलिष्ठा जायन्ते ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे अन्न इत्यादी पुष्कळ पदार्थांचा संचय करून त्यांना संस्कारित करून भोजन करतात व इतरांना करवितात आणि हवन इत्यादी उत्तम कार्याने वृष्टीची शुद्धी करतात ते अत्यंत बलिष्ठ होतात. ॥ २ ॥