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विश्वे॑भिः सो॒म्यं मध्वग्न॒ इन्द्रे॑ण वा॒युना॑। पिबा॑ मि॒त्रस्य॒ धाम॑भिः॥

English Transliteration

viśvebhiḥ somyam madhv agna indreṇa vāyunā | pibā mitrasya dhāmabhiḥ ||

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Pad Path

विश्वे॑भिः। सो॒म्यम्। मधु॑। अग्ने॑। इन्द्रे॑ण। वा॒युना॑। पिब॑। मि॒त्रस्य॑। धाम॑ऽभिः॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:14» Mantra:10 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:27» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:4» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

किसके साथ में यह विद्युत् अग्नि क्रियाओं की सिद्धि करानेवाला होता है, सो अगले मन्त्र में कहा है-

Word-Meaning: - (अग्ने) यह अग्नि (इन्द्रेण) परम ऐश्वर्य करानेवाले (वायुना) स्पर्श वा गमन करनेहारे पवन के और (मित्रस्य) सब में रहने तथा सब के प्राणरूप होकर वर्त्तनेवाले वायु के साथ (विश्वेभिः) सब (धामभिः) स्थानों से (सोम्यम्) सोमसम्पादन के योग्य (मधु) मधुर आदि गुणयुक्त पदार्थ को (पिब) ग्रहण करता है॥१०॥
Connotation: - यह विद्युद्रूप अग्नि ब्रह्माण्ड में रहनेवाले पवन तथा शरीर में रहनेवाले प्राणों के साथ वर्त्तमान होकर सब पदार्थों से रस को ग्रहण करके उगलता है, इससे यह मुख्य शिल्पविद्या का साधन है॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

केन सहैतत् क्रियाहेतुर्भवतीत्युपदिश्यते।

Anvay:

अयमग्निरिन्द्रेण वायुना सह मित्रस्य विश्वेभिर्धामभिः सोम्यं मधु पिबति॥१०॥

Word-Meaning: - (विश्वेभिः) सर्वैः। अत्र बहुलं छन्दसि इत्यैसभावः। (सोम्यम्) सोमसम्पादनार्हम्। सोममर्हति यः। (अष्टा०४.४.१३८) इति यः प्रत्ययः (मधु) मधुरादिगुणयुक्तम् (अग्ने) अग्निः प्रत्यक्षाप्रत्यक्षः (इन्द्रेण) परमैश्वर्य्यहेतुना (वायुना) स्पर्शवता गतिमता पवनेन सह (पिब) पिबति गृह्णाति। अत्र पुरुषव्यत्ययो लडर्थे लोट् द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घश्च। (मित्रस्य) सर्वगतस्य सर्वप्राणभूतस्य (धामभिः) स्थानैः॥१०॥
Connotation: - अयं विद्युदाख्योऽग्निर्ब्रह्माण्डस्थेन वायुना शरीरस्थैः प्राणैः सह वर्त्तमानः सन् सर्वेषां पदार्थानां सकाशाद् रसं गृहीत्वोद्गिरति, तस्मादयं मुख्यं शिल्पसाधनमस्तीति॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हा विद्युतरूपी अग्नी ब्रह्मांडात राहणाऱ्या पवन व शरीरात राहणारा प्राण यांच्याबरोबर विद्यमान असतो. सर्व पदार्थांपासून रसग्रहण करून परत देतो. यामुळे तो मुख्य शिल्पविद्येचे साधन आहे. ॥ १० ॥