Go To Mantra

द॒ध्यङ्ह॑ मे ज॒नुषं॒ पूर्वो॒ अङ्गि॑राः प्रि॒यमे॑ध॒: कण्वो॒ अत्रि॒र्मनु॑र्विदु॒स्ते मे॒ पूर्वे॒ मनु॑र्विदुः। तेषां॑ दे॒वेष्वाय॑तिर॒स्माकं॒ तेषु॒ नाभ॑यः। तेषां॑ प॒देन॒ मह्या न॑मे गि॒रेन्द्रा॒ग्नी आ न॑मे गि॒रा ॥

English Transliteration

dadhyaṅ ha me januṣam pūrvo aṅgirāḥ priyamedhaḥ kaṇvo atrir manur vidus te me pūrve manur viduḥ | teṣāṁ deveṣv āyatir asmākaṁ teṣu nābhayaḥ | teṣām padena mahy ā name girendrāgnī ā name girā ||

Mantra Audio
Pad Path

द॒ध्यङ्। ह॒। मे॒। ज॒नुष॑म्। पूर्वः॑। अङ्गि॑राः। प्रि॒यऽमे॑धः॑। कण्वः॑। अत्रिः॑। मनुः॑। वि॒दुः॒। ते। मे॒। पूर्वे॑। मनुः॑। वि॒दुः॒। तेषा॑म्। दे॒वेषु॑। आऽय॑तिः। अ॒स्माक॑म्। तेषु॑। नाभ॑यः। तेषा॑म्। प॒देन॑। महि॑। आ। न॒मे॒। गि॒रा। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। आ। न॒मे॒। गि॒रा ॥ १.१३९.९

Rigveda » Mandal:1» Sukta:139» Mantra:9 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:4» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:20» Mantra:9


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (दध्यङ्) धारण करनेवालों को प्राप्त होनेवाला (पूर्वः) शुभगुणों से परिपूर्ण (अङ्गिराः) प्राण विद्या का जाननेवाला (प्रियमेधः) धारणावती बुद्धि जिसको प्रिय वह (अत्रिः) सुखों का भोगनेवाला (मनुः) विचारशील और (कण्वः) मेधावीजन (मे) मेरे (महि) महान् (जनुषम्) विद्यारूप जन्म को (ह) प्रसिद्ध (विदुः) जानते हैं (ते) वे (मे) मेरे (पूर्व) शुभ गुणों से परिपूर्ण पिछले जन यह (मनुः) ज्ञानवान् है यह भी (विदुः) जानते हैं (तेषाम्) उनको (देवेषु) विद्वानों में (आयतिः) अच्छा विस्तार है (अस्माकम्) हमारे (तेषु) उनमें (नाभयः) सम्बन्ध हैं (तेषाम्) उनके (पदेन) पाने योग्य विज्ञान और (गिरा) वाणी से मैं (आ, नमे) अच्छे प्रकार नम्र होता हूँ, जो (इन्द्राग्नी) प्राण और बिजुली के समान अध्यापक और उपदेशक हों उनको मैं (गिरा) वाणी से (आ, नमे) नमस्कार करता हूँ ॥ ९ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जगत् में जो विद्वान् हैं, वे ही विद्वान् के प्रभाव को जानने योग्य होते हैं किन्तु क्षुद्राशय नहीं, जो जिनसे विद्या ग्रहण करें, वे उनके प्रियाचरण का सदा अनुष्ठान करें, सब इतर जनों को आप्त विद्वानों के मार्ग ही से चलना चाहिये किन्तु और मूर्खों के मार्ग से नहीं ॥ ९ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

यो दध्यङ्पूर्वोऽङ्गिराः प्रियमेधोऽत्रिर्मनुः कण्वो मे महि जनुषं विदुस्ते मे पूर्वे यं मनुरिति विदुः। तेषां देवेष्वायतिरस्ति। अस्माकं तेषु नाभयः सन्ति तेषां पदेन गिरा चाहमानमे याविन्द्राग्नी इवाप्तावध्यापकोपदेशकौ स्यातां तावहं गिरा नमे ॥ ९ ॥

Word-Meaning: - (दध्यङ्) दधीन् धारकानञ्चति (ह) (मे) मम (जनुषम्) विद्याजन्म (पूर्वः) शुभगुणैः पूर्णः (अङ्गिराः) प्राणविद्यावित् (प्रियमेधः) प्रिया मेधा प्रज्ञा यस्य सः (कण्वः) मेधावी (अत्रिः) सुखानामत्ता भोक्ता। अदधातोरौणादिकस्त्रिः प्रत्ययः। (मनुः) मननशीलः (विदुः) जानन्ति (ते) (मे) मम (पूर्वे) शुभगुणैः पूर्णाः (मनुः) ज्ञाता (विदुः) (तेषाम्) (देवेषु) विद्वत्सु (आयतिः) समन्ताद् विस्तृतिः (अस्माकम्) (तेषु) (नाभयः) सम्बन्धिनः (तेषाम्) (पदेन) प्राप्तव्येन विज्ञानेन (महि) महत् (आ) (नमे) नमामि (गिरा) वाण्या (इन्द्राऽग्नी) प्राणविद्युताविव (आ) (नमे) (गिरा) ॥ ९ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। जगति ये विद्वांसस्सन्ति त एव विदुषां प्रभावं ज्ञातुमर्हन्ति न क्षुद्राऽशयाः। ये यस्माद्विद्या आददीरन्, ते तेषां प्रियाचरणं सदानुतिष्ठन्तु। सर्वैरितरैर्जनैराप्तानां विदुषां मार्गेणैव गन्तव्यं नेतरेषां मूर्खाणाम् ॥ ९ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. या जगात विद्वानच विद्वानांचा प्रभाव जाणतात. क्षुद्र माणसे जाणू शकत नाहीत. जे ज्यांच्याकडून विद्या ग्रहण करतात त्यांनी त्यांच्या प्रियाचरणाचे सदैव अनुष्ठान करावे. इतर सर्व लोकांनी आप्त विद्वानांच्या मार्गानेच चालले पाहिजे, मूर्खांच्या मार्गाने नाही. ॥ ९ ॥