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प्र हि त्वा॑ पूषन्नजि॒रं न याम॑नि॒ स्तोमे॑भिः कृ॒ण्व ऋ॒णवो॒ यथा॒ मृध॒ उष्ट्रो॒ न पी॑परो॒ मृध॑:। हु॒वे यत्त्वा॑ मयो॒भुवं॑ दे॒वं स॒ख्याय॒ मर्त्य॑:। अ॒स्माक॑माङ्गू॒षान्द्यु॒म्निन॑स्कृधि॒ वाजे॑षु द्यु॒म्निन॑स्कृधि ॥

English Transliteration

pra hi tvā pūṣann ajiraṁ na yāmani stomebhiḥ kṛṇva ṛṇavo yathā mṛdha uṣṭro na pīparo mṛdhaḥ | huve yat tvā mayobhuvaṁ devaṁ sakhyāya martyaḥ | asmākam āṅgūṣān dyumninas kṛdhi vājeṣu dyumninas kṛdhi ||

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Pad Path

प्र। हि। त्वा॒। पू॒ष॒न्। अ॒जि॒रम्। न। याम॑नि। स्तोमे॑भिः। कृ॒ण्वे। ऋ॒णवः॑। यथा॑। मृधः॑। उष्ट्रः॑। न। पी॒प॒रः॒। मृधः॑। हु॒वे। यत्। त्वा॒। म॒यः॒ऽभुव॑म्। दे॒वम्। स॒ख्याय॑। मर्त्यः॑। अ॒स्माक॑म्। आ॒ङ्गू॒षाम्। द्यु॒म्निनः॑। कृ॒धि॒। वाजे॑षु। द्यु॒म्निनः॑। कृ॒धि॒ ॥ १.१३८.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:138» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:2» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:20» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (पूषन्) पुष्टि करनेवाले ! (यथा) जैसे आप (मृधः) संग्रामों को (ऋणवः) प्राप्त करो अर्थात् हम लोगों को पहुँचाओ वा (उष्ट्रः) उष्ट्र के (न) समान (मृधः) संग्रामों को (पीपरः) पार कराओ अर्थात् उनसे उद्धार करो वैसे (स्तोमेभिः) स्तुतियों से (यामनि) पहुँचानेवाले व्यवहार में (अजिरम्) ज्ञानवान् अर्थात् अति प्रवीण के (न) समान (त्वा) आपको (प्र, कण्वे) प्रशंसित करता हूँ और आपको मैं (हुवे) हठ से बुलाता हूँ, (यत्) जिस कारण (सख्याय) मित्रपन के लिये (मयोभुवम्) सुख करनेवाले (देवम्) मनोहर (त्वा) आपको (मर्त्यः) मरण धर्म मनुष्य मैं हठ से बुलाता हूँ इस कारण (अस्माकम्) हमारे (आङ्गूषान्) विद्या पाये हुए वीरों को (द्युम्निनः) यशस्वी (कृधि) करो और (वाजेषु) संग्रामों में (द्युम्निनः) प्रशंसित कीर्त्तिवाले (हि) ही (कृधि) करो ॥ २ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्य बुद्धिमान् विद्यार्थियों को विद्यावान् करें, शत्रुओं को जीतें, वे अच्छी कीर्त्ति के साथ माननीय हों ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे पूषन् यथा त्वं मृध ऋणव उष्ट्रो न मृधः पीपरस्तथा स्तोमेभिर्यामन्यजिरं न त्वा प्रकृण्वे त्वामहं हुवे यत् सख्याय मयोभुवं दैवं त्वा मर्त्योऽहं दुवे ततोऽस्माकमाङ्गूषान् वीरान् द्युम्निनः कृधि। वाजेषु द्युम्निनो हि कृधि ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (प्र) प्रकर्षे (हि) (त्वा) त्वाम् (पूषन्) पुष्टिकर्त्तः (अजिरम्) ज्ञानवन्तम् (न) इव (यामनि) यातरि (स्तोमेभिः) स्तुतिभिः (कृण्वे) करोमि (ऋणवः) प्राप्नुयाः (यथा) (मृधः) संग्रामान् (उष्ट्रः) (न) इव (पीपरः) पारये। अत्र लुङि बहुलं छन्दसीत्यडभावः। (मृधः) संग्रामान् (हुवे) स्पर्द्धे (यत्) यतः (त्वा) त्वाम् (मयोभुवम्) सुखकारकम् (देवम्) कान्तारम् (सख्याय) सखित्वाय (मर्त्यः) मनुष्यः (अस्माकम्) (आङ्गूषान्) प्राप्तविद्यान् (द्युम्निनः) यशस्विनः (कृधि) कुरु (वाजेषु) संग्रामेषु (द्युम्निनः) प्रशस्तकीर्त्तिमतः (कृधि) ॥ २ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। ये मनुष्या धीमतो विद्यार्थिनो विद्यावतः कुर्युः शत्रून् विजयेरन् ते कीर्त्या माननीयाः स्युः ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे बुद्धिमान विद्यार्थ्यांना विद्वान करतात, शत्रूंना जिंकतात ती उत्तम कीर्तिमान व माननीय ठरतात. ॥ २ ॥